Thursday 26 December 2019

शबद राधा स्वामी जी



Radha Swami

चिट्ठी आई मेरे सतगुरु की साईं तुरंत बुलाया है
एक अंधियारी कोठरी दीया नहीं बाती
यम के दूत लेने को आए संग नहीं साथी
रे साईं तुरंत बुलाया है
सावन की अंधियारी जी निज भादो राती
चौवन पवन झकोर केजी धड़के मेरी छाती
रे साईं तुरंत बुलाया है
जाना तो जरूर है रे रहना हमको नाए
क्या ले मिलूं हजूर से गांठ मेरी कछु नाएं
रे सांई तुरंत बुलाया है
पलटू जग में आए के रे नैना भर रहे रोय
जीवन जन्म गंवाए के रे आपे को रहे खोए
रे सांई तुरंत बुलाया है

Radha Swami

भजन पे बैठ लेरी सुरता जाना पल्ली पार
सतगुरु जी के बाग में री सुरता लंबा पेड़ खजूर
चढ़े तो मेवा चाख ले री सुरता गिरे तो चकनाचूर
भजन  पे
सतगुरु जी पतंग उड़ा रहे री सुरता लंबी करके डोर
आयो झरोखा ब्यार को री सुरता कहीं पतंग कहीं डोर
भजन  पे
माखी गुड़ को खा रही री सुरता गुड माखी को खाए
ऐसा लालच छोड़ दे री सुरता लालच बुरी बलाए
भजन पे
रामानंद की गोद में री सुरता कंकर लड़े बजीर
कंकर बाजी हार गए री सुरता जीते संत कबीर
भजन  पे

Radha Swami

काया में जादू होए हेरी मां में डर गई
लगा समाधि बैठी भजन में सूरत चढ़ी आकाश
हेरी मां मैं डर गई
ढोलक बाजे मंजीरा बाजे किंगरी बजे अनूप
हेली मां मैं डर गई
बाहर अंधेरा भीतर उजाला सूरत चढ़े अनेक
हैरी मां में डर गई
बादल गरजे बिजली चमके बारिश हुए हमेश
हैरी मां मैं डर गई
कहे कबीर सुनो भाई साधो सुमिरन करो हमेश
हेरी मां डर भागे

Radha Swami

तेरा कोई नहीं रोकन हार मगन होय मीरा चली
लाज शर्म कुल की मर्यादा सिर से दूर करी
मान अपमान दोऊ धर पटके निकासी हू ज्ञान गली
ऊंची अटरिया लाल किवड़िया निर्गुण सेज बिछी
पंचरंगी झालर शुभ शो है फूलन फूलकली
बाजूबंद कडूला सोहे सिंदूर मांग भरी
सुमिरन थाल हाथ में लिन्हा शोभा अधिक खरी
सेज सुख मना मीरा सोवे शुभ हे आज घरी
तुम जाओ राणा घर अपने मेरी तेरी नहीं सरी

Radha Swami

दिल दरिया में डुबकी लगा ले मोती लाना है मोती
इस काया के नौ दरवाजे नौ के ऊपर है खिड़की
यह खिड़की कोई हरिजन खोलें सार शब्द जिन पर होती टेक
अननकार में झंनकार है झंनकार में है ज्योति
या ज्योति में अखेय सुनय हैं अखेय सुन्य में है मोती
दिल दरिया
अखेय सुन्य में गंगधार है त्रिवेणी वहां पर बहती
तन का कपड़ा मन का साबुन सेर पिया जी वहां होती
दिल दरिया
खरा समुंदर ईपु चिपु सहस धार वहां पर बहती
कहत कबीर सुनो भाई साधु लड़िया की लड़ियां हे मोती
दिल दरिया

Radha Swami

मोहे गुरु मिले रविदास सास घर ना जाऊं
एक बेल के दोहे तुमा एक ही उनकी जात
एक गली में रुड़ता फिरता एक संत के हाथ
सास घर ना जाऊं
एक माटी के दोहे बर्तन एक ही उनकी जात
एक में रहता माखन मिश्री एक धोबी घाट
सास घर ना जाऊं
कांख में से रांपी काढ़ी चीरोअपनों गात
सात जन्म को निकलो जनेऊ आठ गांठ नो तार
सास घर ना जाऊं
अपने महल से मीरा उतरी घट में गंगा नहाए
पांव परूं रविदास गुरु के अमरलोक ले जाए
सास घर ना जाऊं

Radha Swami

सुनी छोड़ गयौ सैलानी सुमिरन कायाको भरतार
तेरी मेरी जन्म जन्म की प्रीत रही एकसार
आज कौन सी गलती हो गई छोड़ गयो मझधार
सुनी छोड़ गयो सैलानी
रोए रोए के रुधन मचावे सब तेरा बेकार
हाय राम अब कोई ना बोले बिरथा रही पुकार
सुनी छोड़ गयो सैलानी
नवाह दुवाह के उढाए पैराह के कर लीनी तैयार
आतो हो तो अब भी आजा लेले सार संभार
सुनी छोड़ गयो सैलानी
बीच गेल में बाट निहारु नीचे लई उतार
आतो हो तो अब भी आजा मन में दया विचार
जितना लेखा लिखा राम ने पूरा हुआ करार
कहत कबीर सुनो भाई साधु गया हरि के द्वार
सुनी छोड़ गयो सैलानी

Radha Swami

साधु भाई जीवत ही करो आशा
जीवत समुझे जीवत बुझे जीवत मुक्ति निवासा
जियत करम की फांसी न काटी मुंए मुक्ति की आशा
तनु छूटे जीव मिलन कहत है सो सब झूठी आशा
अब हूं मिला तो तबहूं मिलेगा नहीं तो जमपुर बासा
दूर-दूर ढूंढे मन लोभी मिटे ना गर्व तराशा
साध संत की करेना बंदगी कटे करम की फांसा
सत गहै सतगुरु को चीन्है सतनाम विश्वासा
कहे कबीर साधन हितकारी हम साधन के दासा

Radha Swami

यह कैसी कसक दाता मेरे मन में लगाई है
सोचा था प्यास बुझेगी तूने और लगाई है
मैं क्यों मैखाने जाऊं मैं क्यों पी करके आऊं
मेरे सतगुरु प्यारे ने भर भर के पिलाई है
यह प्यार का सौदा है सरधर की बाजी है
कोई माने ना माने मेरा सतगुरु राजी है
सद्गुरु को मोहब्बत है लेकिन वह छुपाते हैं
यह बात हमें उनकी नजरों ने बताई है
यह नाम बांटने का तेरा ढंग निराला है
सिमरन की चाबी से खुले ज्ञान का ताला है

Radha Swami

हंसा निकल गया पिंजरे से खाली पड़ी रहे तस्वीर
यम के दूत लेने को आए तनक धरे ना धीर
मार के सोटा प्राण निकालें बहे नैन से नीर
हंसा निकल गया
बहुत मनाए देवी देवता बहुत मनाए पीर
अंत समय कोई काम ना आया जाना पड़े अखिर
हंसा निकल गया
कोई तो रोवे कोई नभावे कोई उढावे चीर
चार जना मिल माथा उठाया ले गए मरघट तीर
हंसा निकल गया
भाग कर्म की कोई न जाने संग चले ना शरीर
या जंगल में चिता जलाई कह गए संत कबीर
हंसा निकल गया

Radha Swami

मेरा बेड़ा लगा दीजो पार गुरुजी में अरज करूं
अब तो निभाया सरेगी बांह गहै की लाज
समरथ शरण तुम्हारी साइयां सरब सुधारण कांज
भवसागर संसार अपरबल जामे तुम हो जहाज
निशधारा आधार जगतगुरु तुम बिन होए अकाज
जुग जुग पीर हरि भक्तन की दीनी मोक्ष समाज
मीरा सुख गही चरणन की लाज रखो महाराज
अब मैं शरण तिहारी जी मोहि राखो कृपा निधान
अजामिल अपराधी तारे तारे नीच सदान
जल डूबत गजराज उबारै मणिका चढ़ि विमान
और अधम तारे बहुत तेरै भाखत संत सुजान
कुबजा नीच भीलनी तारी जाने सकल जहान
कहूं लोग कहूं गिनत नहीं आवे थीक रहे वेद पुराण
मीरा कहे में सरण शवाली सुनिऔ दोनों कान

Radha Swami

माटी का जिस्म तेरा माटी में ही मिल जाएगा
जैसा बीज बोएगा वैसा फल पाएगा
बंदे तेरी मेरी ना कर तेरा मेरा कुछ भी नहीं
रस्ते का मुसाफिर है रस्ते में बिछड़ जाएगा
माटी का जिस्म तेरा
बंदे अभिमान ना कर यह घर रैता का
झोंका ऐसा आएगा एक पल में उड़ाएगा
माटी का जिस्म तेरा
कितने तूने पाप किये कितने अपराध किये
अपनी खुशी के लिए लाखों बर्बाद किए
फिर पछताएगा जन्म मरण गांवांएगा
माटी का जिस्म तेरा
बंदे तुझे रहना नहीं एक दिन जाना है
सद्गुरु की शरण में आ पार हो जाएगा
माटी का जिस्म तेरा

Radha Swami

चरखा बल खा गयो री सुगड़कातन हारी
अरे नो महीना में कारीगर ने चरखा दियो बनाएं
कातन हारी श्याम सुंदरी लूढ लूढ कांतै तार
सुगड़ कातनहारी
एक हे चरखा दस पंखुड़ी है सहसों उतारे तार
पांच तत्व को बना है चरखा तीन लगाई यामें सार
सुगड़ कातन हारी
सासो मरीयो ससुरों मरियो और मरियो भरतार
खाती को लड़का अमर रहे जाने चरखा दिओ बनाएं
सुगड कातनहारी
पच्चीसों तो छोरी मरीयो पांचों मरियो पूत
इन सब मिलकर खेत उजाड़ो नाम धराओ भूत
सुगड़ कातन हारी
कहे कबीर सुनो भाई साधो यह पद है निरबान
या पद की कोई करे खोजना वह है संत सुजान
सुगड़कातन हारी

Radha Swami

जिस दिन तुम्हारा दर्शन होगा
उस दिन सफल मेरा जीवन होगा
पापी हृदय तो मेरा पावन होगा
जिस दिन तुम्हारा दर्शन होगा
आप है भक्तों के रक्षक आप हितकारी हैं
पत्थर की तो शीला तर गई छूते चरण नारी हैं
तन मन सेवा में अर्पण होगा उस दिन सफल
मेरा जीवन होगा जिस दिन तुम्हारा
आपकी राहों में शबरी ने नैन बिछाए थे
झूठे बेर प्रभु जी ने भीलनी के खाए थे
भक्तों के बस में भगवान होगा उस दिन सफल
मेरा जीवन होगा जिस दिन तुम्हारा
आपके हाथों में प्रभु जी मेरी जीवन डोरी है
मानो या ना मानो सतगुरु यह विनती तो मेरी है
सब कुछ गुरु को अर्पण होगा उस दिन सफल
मेरा जीवन होगा जिस दिन तुम्हारा

Radha Swami

राम नाम की नईया लेकर सतगुरु करे पुकार
आओ मेरी नईया में ले चलूं भव से पार
जो कोई इस नईया में चढ़ जाएगा
जन्म जन्म का पाप सभी धूल जाएगा
चौरासी का बंधन कट जाए पड़े ना जम की मार
आओ मेरी नैईया में
पाप की गठरी शिश धरी कैसे आऊं मैं
अपने ही अवगुण से खुद शरमाऊं में
तेरी तुम नईया सत की है सतगुरु मेरे पाप हजार
आओ मेरी नैईया में
अपना जीवन सौंप दो मेरे हाथों में
सूरत शब्द की करो कमाई रातों में
पाप पुण्य का बनके आया मैं तेरा ठेकेदार
आओ मेरी नैईया में
करके दया सतगुरु ने चुनरिया रंग डाली
जन्म जन्म की मेली चादर धो डाली
दाग लगी थी मेरी चुनरिया हो गई लाल गुलाल
आओ मेरी नैईया में
बड़े भाग से सतगुरु जी का प्यार मिला
मुझ दुखिया को जीवन का आधार मिला
बीच भंवर में नैईया अटकी आगे तारणहार
आओ मेरी नैईया में
राधा स्वामी सतगुरु दाता बनाए व्यास नदी पर
अपना डेरा ले आए दया करी सतगुरु दाता ने
दीया धरती पर स्वर्ग उतार
आओ मेरी नैईया में

Radha Swami

सतगुरु दीनदयाल हैं हमारा सहारा
अगर न मिलते इस जीवन में तो जाते जम के द्वारा
सद्गुरु में गुरु सुकरत बनकर आए गुरु हमारे
नरसिंह रूप धराकरके फिर हरिणाकुश को मारा
सतगुरु दीन दयाल है हमारा
त्रेता में गुरु मुनींद्र बनकर आए गुरु हमारे
श्री राम का रूप धरा कर के रावण को जो मारा
द्वापर में करुणामय बनकर आए गुरु हमारे
श्री कृष्ण का रूप धरा कर कंस को जो मारा
सतगुरु दीन दयाल है हमारा
कलयुग में गुरु कबीर बंद कर आए गुरु हमारे
राधास्वामी रूप धरा कर नाम दिया सहारा
सतगुरु दीन दयाल है हमारा

Radha Swami

जरा धीरे धीरे गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले
अरे गाड़ी म्हारी रंग रंगीली पहिया है लाल गुलाल
हांकन वाली छैल छबीली भई बैठन वाला राम
भाई धीरे-धीरे
एजी गाड़ी अटकी रेत में भई मंजिल पड़ी है दूर
धर्मी धर्मी पार उतर गए पापी चकनाचूर
भाई धीरे-धीरे
एजी देश देश का बेद बुलाया लाया जड़ी और बूटी
एजी जड़ी बूटी तेरे काम ना आए ले ले राम के घर की बूटी
भाई धीरे-धीरे
एजी चार जना मिल माथा उठाया बांधी काट की घोड़ी
अरे ले जाके मरघट पर रख दीनी फुक दीनी जैसे होरी
भाई धीरे-धीरे
अरे बिलख बिलख के त्रिया रोवे बिछड़ गई मेरी जोड़ी
कहे कबीर सुनो भाई साधो जिन जोड़ी उन तोड़ी
भाई धीरे धीरे

Radha Swami

मन करे ना सोच विचार गुरु तेरा राखा रे
गुरु तेरा राखा साईं तेरा राखा
उसको कभी ना विसार गुरु तेरा राखा रे
रखियो भरोसा गुरु चरणन का तक दुनिया के झूठे
रिश्ते अपने मन को मार गुरु तेरा रखा रे
वह होगा जो गुरु मन भावे सोच सोच कर समय
गवावे मन में धीरज धार गुरु तेरा रखा रे
गुरु राजी तो सब जग राजी गुरु खातिर छड़
दुनिया सारी होगी कभी ना हार गुरु तेरा राखा रे
दुनिया दुश्मन फिकर ना करियो गुरु में अपना
निश्चय रखियो करेंगे बेड़ा पार गुरु तेरा राख रे
मतलब की है दुनिया सारी मतलब की है रिश्तेदारी
वाह वाह गुरु तेरा प्यार गुरु तेरा रखा रे

Radha Swami

वाह सोणिया तेरी चाल अजायब
लटका नाल चलन देऔ
वाह सोणियां
आपे जाहर आपे काजी
आपे लुक लुक पेदें हो
वाह सोणियां
आपे मुल्लाह पर काजी
आप पर लंमा पढ़ादे हो
वाह सोणिया
कतजनार कुफ रदा गढ विच
बुत खांडे बड़ बंदे हो
वाह सोणीयां
लो लाक लंबा फुलाक विचारों
आपे धूम्ब मचादें हो
वाह सोणिया
जात तो है असराफ रजेंटा
लाइयां ते लाज रखदें हो
वाह सोणियां
बुल्ला शाह इनायत मैनू
पल-पल दर्शन देंगे हो
वाह सोणिया

Radha Swami

हेली म्हारी गांऔ ना शब्द मल्हार गगन में मेरे डोलना
कौन तत्व तेरो बनो री डोलना हैली कोई की लग रही डोर
पांच तत्व मेरो बनोरि डोलना हेली सुरता शब्द की लग रही डोर
कौन महल तेरे टिकोरी डोलना कौन दिशा में आवे जावे
त्रिकुटी महल मेरो टिकोरी डोलना पश्चिम दिशा में आगे जावे
कहे कबीरा धर्मी धीरे धरो हेली सत्य में सत्य समाय

Radha Swami

सौदा कर भाई निज व्यापारी हर के नाम का
साध संगत मिल गाय की गुरु ने हाट लगाई निजी व्यापारी
भाव खुला सब रंग का हरि को दलाली निज व्यापारी
पाप पुण्य दो पालणा सुरता की डांडी निजी व्यापारी
ज्ञान दुशेरा डाल के पूरा कर भाई निज व्यापारी
पूरा करके चल दिया जम ने रोक लिया गाथा निज व्यापारी
कौन देश का बनिया कर लगे हैं हमारा निज व्यापारी
सतलोक का बनिया सचखंड का वासी निजी व्यापारी
दास कबीरा गुरु मिला जम में छोड़ दिया गाथा निजी व्यापारी

Radha Swami

मेरे सतगुरु जी तुसी मेहर करो
मैं दर तेरे ते आई हुई आं
मेरे कर्मा वल न वेखियो जी
मैं कर्मा तों शर्माई होईआं
जो दर तेरे ते आ जादां
वो असल खजाने पा जांदा
मेनू भी खाली मोड़ी ना
में भी दर तेरे ते आस लगाई होईआं
मेरे सतगुरु जी
तुसी तारणहार कहांदे हो
डूबिया नु बनने लोंदे हो
मेरा भी बेड़ा पार करो
मैं भी दुखीयारन आई होईआं
मेरे सतगुरु जी
मेरे सतगुरु जी तुसी मेहर करो
मैं दर तेरे ते आई होईआं
मेरे करमा वल न वेखियो जी
मैं करमा तो शर्माई होईआं

Radha Swami

मेरे मालिक तेरी नौकरी सबसे ऊंची है सबसे बड़ी
तेरे दरबार की हाजिरी सबसे ऊंची है सबसे बड़ी
खुशनसीबी का जब गुल खिले उसे मालिक का तबदर मिले
हो गई जब से रहमत तेरी सबसे ऊंची है सबसे बड़ी
जबसे तेरा गुलाम हो गया जग में मेरा भी नाम हो गया
वरना औकात क्या थी मेरी सबसे ऊंची है सबसे बड़ी
मैं नहीं था किसी का काम का ले सहारा तेरे नाम का
ढूंढ ली मैंने मंजिल नयी सबसे ऊंची है सबसे बड़ी
मेरी तनख्वाह भी कुछ कम नहीं कुछ मिले ना मिले गम नहीं
शान ऊंची है मेरी सबसे ऊंची है सबसे बड़ी
मेरे मालिक तेरी नौकरी सबसे ऊंची है सबसे बड़ी
तेरे दरबार की हाजिरी सबसे ऊंची है सबसे बड़ी

Radha Swami

साधु सो सतगुरु मोहे भावे
सतनाम का भरी-भरी प्याला आप पिवे मोहे प्यावे
मेले जाए ना महंत कहावे पूजा भेद न लावे
पर्दा दूरी करें आंखिन को निज दर्शन दिखलावे
जाके दर्शन साहिब दर से अनहद शब्द सुनावे
माया के सुख दुख करी जाने संग ना सुपन चलावे
निशदिन सतसंगत में रचे शब्द में सूरत समावे
कहे कबीर ताको भई नाही निर्भय पद परसावे

Radha Swami

हर भज हर भज हीरा परख ले शब्द पकड़ ले मजबूती
अख मंडल में खेल मेरे अवधू और बात तेरी सब झूठी
हर भज हर भज
पांच चोर तेरे मन के अंदर जिनकी पकरो सिर चोटी
पांचों मार पच्चीसन बस कर जब जानूगा तेरी मजबूती
हर भज हर भज
सच्चे मन को धरा बना ले पासंग होय ना एक रत्ती
गलगम की बंदूक बना ले ढाल बना ले धीरज की
हर भज हर भज
त्रिवेणी के जाय घाट पर हंस चुगे नित उठ मोती
कहत कबीर सुनो भाई साधु सद्गुरु दे गए रंग बूटी
हर भज हर भज

Radha Swami

मुझे है काम ईश्वर से जगत रूठे तो रूठन दे
कुटुंब परिवार सूत धारा माल धन लाज लोकन की
हरि के भजन करने से अगर छूटे तो छूटन दे
बैठ संगत में संतन की कर कल्याण में अपना
लोग दुनिया के भोगों में मौज लूटे तो लुटन दे
प्रभु के ध्यान करने की लगी लगन मेरे
प्रीत संसार विषयों से अगर टूटे तो टूटन दे
धरी सिर्फ आप की मटकी मेरे गुरुदेव ने झटकी
वो ब्रह्मानंद ने पटकी अगर फूटे तो फूटन दे

Radha Swami

ना पल बिछड़े पिया हम से ना हम बिछड़े प्यारे से
उन्हीं से नेह लागी है हमन को बेकरारी क्या
हमन है इश्क़ मस्ताना हमन को होशयारी क्या
रहै आजादी या जग से रहे हमन दुनिया से यारी क्या
जो बिछड़े हैं प्यारे से भटकते दरबदर फिरते
हमारा यार है हम मैं हमन को इंतजारी क्या
खलक सब नाम अपने को बहुत कर सिर पटकता है
हमन गुरु नाम सांचा है हमन दुनिया से यारी क्या
कबीरा इश्क का माता हुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाजुक है हमन सिर बोझ भारी क्या

Radha Swami

मेरे जन्म मरण के साथी तुम्हें नहीं विसरू दिन राती
तुम देखया बिन कल ना पड़त है जानत मेरी छाती
ऊंची चढ़ चढ़ पंथ निहारूं रोए रोए अखियां राती
यह संसार सकल जग झूठो झूठा कुलरा न्याति
दोऊ कर जोड़ियां अरज करूं मैं सुन लीजो मेरी बाती
यो तन मेरो बड़ो हरामी जो मदमातो हाथी
सतगुरु हाथ धरो सिर ऊपर अंकुश दे समझाती
पल पल पिव को रूप निहारू निरख निरख सुख पाती
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरि चरण चित राती

Radha Swami

मैं वारी जाऊं राम तुम आवो गली हमारी
तुम देख्या बिन कल न परत है जौऊं बाट तुम्हारी
कौन सखियां तुम रंग राते हमते अधिक प्यारी
कृपा कर मोहे दर्शन दीजो सब तकसीर विसारी
मैं शरणागत तुम हो दयाला भव से तार मुरारी
मीरा दासी तुम चरणन की बार-बार बलिहारी

Radha Swami

गुरुजी से मिल गयो ज्ञान भरम सारों मिट जावे रे
आनंद सत्संग में आवे रे
वहां बरसे अमृत की धारा पीवेगा संत सुजान
प्यास मंकी बुझ जावे रे
आनंद सत्संग में आवे रे
भैरौं भूमिया भवानी ने ध्यावे गुरु गोविंद ने पीठ दिखावे
करे भूतों का वास वास नरका में जावे रे
आनंद सत्संग में आवे रे
गुरु समान और नहीं दूजा तन मन से कर लो बाकी पूजा
ऐसा दीनदयाल नाम से जम घबरावे रे
आनंद सत्संग में आवे रे
ओम नाम का दिया झंकारा गावे भवानी नाथ
नाम अमरापुर पावे रे
आनंद सत्संग में आवे रे

Radha Swami

आज सखी सतगुरु घर आए मेरो मन आनंद भयो री
दर्शन से सब पाप बिनासे दुख दृर्द सब दूर गयो री
अमृत वचन सुन्नत तम नमो घट भीतर प्रभु पाए लियो रे
जनम जनम के संसय टूटे भव भय ताप मिटाई दियो री
ब्रह्मानंद दास दासन कों चरण कमल लिपटाये रहो री

Radha Swami

करूँ बंदगी राधास्वामी आगे जिन पर ताप जीव बहुत जागे
बारंबार करूं प्रणाम सद्गुरु पदम धाम सतनाम
आदि अनादि जुगादि अनाम संत स्वरूप छोड़ निजधाम
आए भवजल नाव लगाई हम से जीवन लिया चढ़ाई
शब्द दृढ़ाया सुरत बताई कर्म भरम से लिया बचाई
दोहा
कोटी कोटी करूं बंदना अरब खरब दंडोत
राधास्वामी मिल गए खुला भक्ति का स्रोत
भक्ति सुनाई सबसे न्यारी वेद कतेब ताही बिचारी
सतगुरु चौथे पद बासा संतन का वहां सदा बिलासा
सो घर दर्शाया गुरु पूरे बिन बजे जहां अचरज तूरे
आगे अलख पुरुष दरबारा देखा जाए सूरत से सारा
तिस पर अगम लोक ईक न्यारा संत सूरत कोई रथ बिहारा
तहां दरसे अटल अटारी अद्भुत राधास्वामी महल सवारी
सूरत हुई अति कर मगनानी पुरुष अनामी जाए समानी

Radha Swami

मेरा काज करें मेरा सतगुरु मेनू चिंता ना कोई
करने वाला आप करेगा जो होना हो तो होई
दुनिया वालों से मोड़ लिया मन गुरु चलना नाल जोड़ लिया
हुंण कदे मैं जुदा ना होना मन विच सोच विचार लिया
पापा वालीयां लगीयां मेला नाम दा साबुन धोए
करने वाला आप करेगा
सतगुरु मेरा अंतर्यामी दिल दिया जानन वाला
मेरा किया कुछ ना होवे उसका कुल पसारा
बुरा बिछुड़ा सतगुरु वाला जिंदगी बुक बुक रोवे
करने वाला आप करेगा
नाम बिना तेरा कोई ना साथी कहते सतगुरु प्यारे
धिया पुत्रा साथ ना देना मतलब के हैं सारे
मोह माया ने साथ न जाना जिंदिया जीअ परे होए
करने वाला आप करेगा
चंगा मंदा में की जाना आप ही जानन हारा
मैं पपीहा ऑगन भरिया आप ही बकसन हारा
एक गुरु के बिना मेरा दूसरा न कोई
करने वाला आप करेगा

Radha Swami

बरज रही मैं इन विषयों से मान कहीं मन मूरख मेरे
जन्म जन्म के बेरी तेरे चौरासी लख फिर फेरे
यह मीठे फल जहर भरे हैं सुख थोड़ा और विपक्ष घनेरे
मृग तृष्णा जल देख लुभाऔ क्या प्यास मिटे कबूहू नहीं तेरी
ब्रह्मानंद संग तज इनको पावे मोक्ष लगे नहीं देरी

Radha Swami

अचरज देखा भारी साधो अचरज देखा भारी रे टेक
गगन बीच अमृत का कुआं झरे सदा सुख कारी रे
पंगु पुरुष चढ़े बिन सीढ़ी पीवे भर भर जारी रे
बिना बजाए निशदिन बाजे घंटा शंख नगारी रे
बहरा सुन सुन मस्त होत है तन की खबर विसारी रे
बिन भूमि के महल बना है ता में जोत उजारी रे
अंधा देख देख सुख पावे बात बतावे सारी रे
जीता मरकर के फिर जीवै भोजन बल धारी रे
ब्रह्मानंद संत जन बिरला समझे बात हमारी रे

Radha Swami

कब तो चलेंगे वा देश में मेरी हेली
वहां के गए ना फिर आए हेली
निर्गुण शेरा साकरी चढ़ा ना उतरो जाए
चढ़ जाऊं तो घर करूं मारो जीवन सफल हो जाए
अनहद के बाजार में हीरा को व्यापार
संत हुए सौदा करें निगुरा फिर फिर जाए
हीरा जड़े हैं झालरों मोतियन जड़ी है कनात
दम दम दमके दामिनी म्हारो वाही पिया जी को देश
ना उगे ना आथवे ना अधियारों होए
एक भान की क्यों चले कोट भानु प्रकाश
ना बरसे ना उगड़े ना हरियाली होय
कहत कबीर धर्मदास से वहां तो अमर हो जाए

Radha Swami

नाम भाव करम नहीं छूटे टेक
साध संगो राम भजन बिन काल निरंतर लूटे
मल रेती जो मल को धोवे सो मल कैसे छूटे
प्रेम का साबुन नाम का पानी दुई मिली तांता टूटे
भेद अभेद भ्रम का बांडा चौड़े परी परी फूटे
गुरुमुख शब्द गहे उर अंतर शक्ल भरम से छूटे
राम का ध्यान धरे से प्राणी अमृत का मैं बटे
जन दरियाव अरप दे आपा जरा मरण तब टूटे

Radha Swami

झीनी झीनी बीनी चदरिया
काहे के ताना काहे के भरनी कौन तार से बीनी चदरिया
इंगला पिंगला ताना भरनी सुखमन तार से बीनी चदरिया
आठ कंवल दल चरखा डोले पांच तत्व गुण तीनी चदरिया
साईं को सियत मास दस लागे ठोक ठोक के बीनी चदरिया
शो चादर सुर नर मुनि ओढ़ि ओढ़ि के मेली कीन्ही चडरिया
दास कबीर जतन से ओढ़ि ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया

Radha Swami

बाल्मिक तुलसी से कह गए ऐसा कलयुग आएगा
ब्राह्मण होकर वेद ना जाने मिथ्या जन्म गांवाएगा
बिना खड़क के क्षत्रिय होंगे शूद्र ही राज चलाएगा
बेटा माता पिता नहीं जाने तिरिया से हित लगाएगा
सो त्रीया स्वामी को ना जाने आन पुरुष मन भाएगा
सती सती कोई विरला होंगे सब दुखिया हो जाएगा
कहत कबीर सुनो भाई साधु राम नाम नहीं भाएगा

Radha Swami

गुरु तेरे बिना कोएना मित्र हमारा तारागन और चंद्रमा
सूरज चौऊ दस करें गुजारा
सबको दिखें अधिक उजारो मोहे घोर अंधियारों
बिरहा लगी दर्शन की भटकूं भेष फकीरी धारो
माता पिता बंधु सुत नारी लगूं सबन को खारो
गुरू तेरे बिना
पिछले पन की प्रीत हमारी अब क्यों करो किनारों
दाम नगिर बनू आगे को जो तुम मोहे विसारों
उठे हिलारे मिलन की दिल में चले विरह को आरो
दुर्बल नाथ शरण सतगुरु की आठ पहर इक सारो
गुरु तेरे बिना

Radha Swami

किलो में संतों सत्पुरुष सतसार
सत्पुरुष का भेद ना पावे किस विध पावे पार
ब्रह्मा विष्णु महादेव भुला भुला जग संसार
आदि पुरुष को जीव बतावे कोई ना पायो पार
ब्राह्मण भूला काजी भूला भुला वेद पुराना रे
ज्ञानी ध्यानी को गम नहीं किस विधि पावे पारा रे
जीव नहीं तू भ्रहम है अविनाशी निरवाना रे
जिनने भेद लिखा किले का शो ही उतरा पारा रे
दुर्बल नाथ मिला गुरु पूरा दिया ज्ञान निजसार
राधाबाई शरण सतगुरु कि पाया पुरुष दीदार

Radha Swami

चलो री सखी आज पिया से मिलाऊं
तन मन धन की प्रीति छुड़ाएं
पुत्र कलित्र जाल छुट काऊं
सुन मंडल धुन अजब सुनाऊं
गगन तखत पर जाए बैठाऊं
तीन लोक का सच दिलाऊं
त्रिवेणी तीरथ पर साऊं
मन माधो से खूंट छुड़ाऊं
कालचक्र से तुरंत बचाऊं
कर्म काट निज घर पहुंचाऊं
महा सुन और भंवर गुफा से
सत्पुरुष दीदार कराऊं
दीन दूरबीन पुरुष एक ऐसी
अलख अगम के पार समाऊं
राधास्वामी पद हम जाना
कहने सुन्न का लगा ठिकाना

Radha Swami

लीजे खबर हमारी मैं तो तेरा नाम का व्यवहारी
तुम तो गुरु जी मेरे कुंभ कलश हो मैं खासा पनिहारी
आओ गुरु जी मेरे शीश विराजो तनक लगे ना भारी
लख चौरासी दाता हम फिर आए बूझ ना भई हमारी जी
हर हीरा घट अंदर दरसे बिसर गई सब संसारी जी
कोई तो बिणजे दाता काशी रे पीतल कोई लोग सुपारी जी
हरिजन बिणजे दाता नाम हरि को विष बिणजे संसारी जी
तन का रे बैल मंथन कारै जड़ा शाय बहो व्यवहारी जी
कहे कबीर सुनो रे भाई साधु पूर्ण खेय हमारी जी

Radha Swami

बाहिर ढूंढन जा मत सजनी पिया घर बीच विराज रहे री
गगन महल में सेज बिछी है अनहद बाजे बाज रहे री
अमृत बरसे बिजली चमके घूमट घूमट घन गाज रहेरी
परम मनोहर तेज पिया को रवि शशि मंडल लाज रहे री
ब्रह्मानंद निरख छवि सुंदर आनंद मंगल छाज रहे री

Radha Swami

मांगू एक गुरु से दाना घट शब्द देव पहिचाना
मन साथ सदा भरमाना कर कृपा कर्म छुड़ाना
सूरत चढ़े धुन ताना मन मारो करम नशाना
सब छोटे बांन कुबाना सत शब्द मिले दृढ़ थाना
अब कर दो नाम दीवाना में ताकूं शब्द नशाना
कोई करे ना मेरी हाना मोहि तुम पर बल बल जाना
कल धारा मुझे ना बहाना मोहि देना शब्द ठिकाना
मन हो गया बहुत निमाना अब राधा स्वामी चरण समाना

Radha Swami

रस गगन गुफा में अजर झरे
बीन बाजा झनकार उठे जहां समुझी परै जब ध्यान धरे
बिना ताल जहां कवंल फुलाने तेही चढ़ी हंसा केल करें
बिन चंदा उजयारी दर से जहां-तहां हंसा नजर परें
दसवें द्वारे ताड़ी लागी अलख पुरुष जाको ध्यान धरे
काल कराल निकट नहीं आवे काम क्रोध मद लोभ जरे
जुगन जुगन की तृखा बुझानी कर्म भरम अध व्याधि टरे
कहे कबीर सुनो भाई साधो अमर होय कबहुं न मरै

Radha Swami

काम क्रोध मद लोभ बीच लरजत नाव हमारी
मेरे सतगुरु दाता भवसागर दुख भारी
तृष्णा लहर उठे घर भीतर भरत है एक झोला
ममता पवन अधिक डर पावे कांपत है मन मोरा
मेरे सतगुरु दाता भवसागर दुख भारी
भवसागर जल अथा भरियो है लागत है डर भारी
ले भला पार उतारो ले ली शरण तुम्हारी
मेरे सतगुरु दाता भवसागर दुख भारी
और दुख मोहे नाना विध के पल पल मे डर पावे
कृपा करो गुरु अंतर्यामी तेरो ही ध्यान लगाऊं
मेरे सतगुरु दाता भवसागर दुख भारी
गुरु सुखदेव सहाय करो अब धीरज रहो ना कोई
चरणदास सुनो रे विनती ली है शरण तुम्हारी
मेरे सतगुरु दाता भवसागर दुःख भारी

Radha Swami

कहे रे गुरु शब्द सुनो चेला चलो रे जहां पुरुष का है मेला
नहीं रे वहां दिवस और राति जले रे वहां तेल बिन बाती
कहें रे गुरु
नहीं रे वहां आप ओंकारा भजन बिना हो रहा झंकारा
कहे रे गुरु
नहीं रे वहां सत्य और साईं ना पहुंचे वहां काल की छाया
कहे रे गुरु
नहीं रे वहां चांद और सूरा कबीर जी का लोक है दूरा
कहे रे गुरु

Radha Swami

मेरा कोई ना सहारा बिन तेरे गुरुदेव सांवरिया मेरे
मैंने जन्म लिया जग में आया प्रभु तेरी कृपा से नर तन पाया
तूने कीए उपकार घनेरे गुरुदेव सांवरिया मेरे
तेरे बिन मेरा कौन यहां प्रभु तुम्हें छोड़ मैं जाऊं कहां
मैं तो आन पड़ा हूं दर तेरे गुरुदेव सांवरिया मेरे
मेरे नैना कब से तरस रहे सावन भादो बरस रहे
अब छाय घोर अंधेरे गुरुदेव सांवरिया मेरे
हरि आ जाओ हरि आ जाओ अब और ना मुझको तरसाओ
काटो जन्म मरण के फेरे गुरुदेव सांवरिया मेरे
जिस दिन से दुनिया में आया मैंने पल भर चैन नहीं पाया
सहे कष्ट पे कष्ट घनेरे गुरुदेव सांवरिया मेरे
मेरा सच्चा मार्ग छूट गया मुझे पांच लुटेरों ने लूट लिया
मैंने जतन किए बहुतेरे गुरुदेव सांवरिया मेरे
मेरे सारे सहारे छूट गए प्रभु तुम भी मुझसे रूठ गए
आओ करले दूर अंधेरे गुरुदेव सांवरिया मेरे

Radha Swami

धूल तेरे चरणों की सतगुरु चंदन और अबीर बनी
निज मस्तक पर जिसने लगाए उसकी तो तकदीर बनी
धूल तेरे चरणों की
चरण धूल से बढ़कर जग में चीज कोई अनमोल नहीं
हर वस्तु का मोल जगत में इसका कोई मोल नहीं
धूल तेरे चरणों की
जनम जनम के रोग मिटाये सुख से भर दिए यह जीवन
पार हुई पत्थर की अहल्या चरण राम के पानी से
पार हुआ पंपापुर भी शबरी चरण धुलाने से
धूल तेरे चरणों की
संत चरण की महिमा गाकर युग युग के वेद पुराण
काले कोये हंस बने चरण धूल से कर स्नान
धूल तेरे चरणों की

Radha Swami

तेरो जन्म मरण मिट जाए हरि का नाम सुमर प्यारे
जग में आया नर तन पाया भाग्य बड़े भारे
मोह भुलाना कदर न जाना रेत रतन डारे
बालापन में मन खेलने में सुख दुख नहीं धारे
जोबन रसिया कामन बसिया तन मन धन हारे
बूढ़ा होकर घर में सोकर सुने वचन खारे
दुर्बल काया रोग सताया तृष्णा तन जारे
प्रभु नहीं सुमरा बीती उमरा काल आए मारे
ब्रह्मानंद बिना जगदीश्वर कौन विपत टारे

Radha Swami

सो पंछी मोहे कोई ना बतावे जो बोले घट माही रे
अबरन बरन रूप नाही रेखा बैठा नाम की छाही रे
या तरुवर में एक पखेरू खावत चुगत डोलत रे
बाकी संधि लखै नहीं कोई कौन भाव से बोलत रे
दृम डार तहं अति घन छाया पंछी बसेरा लेई रे
उड़े सांस चल आवे सवेरा मरम ना काहू देई रे
दो फल चाखन जाए रहेयो आगे और नहीं दस बीसा रे
अगम अपार निरंतर बासा आवत जात ना दीसा रे
कहे कबीर सुनो भाई साधो यह कुछ अगम कहानी रे
या पंछी का कौन ठोर है बूझो पंडित ज्ञानी रे

Radha Swami

जब तेरी डोली निकाली जाएगी बिन मुहूर्त के उठाली जाएगी
उन हकीमों से कहो यूं बोलकर करते थे दावा
किताबें खोलकर यह दवा हरगिज़ न खाली जाएगी
जब तेरी डोली
जब सिकंदर का यहां भी रह गया मरते दम लुकवान
भी यह कह गया यह घड़ी हरगिज़ ना टाली जाएगी
जब तेरी डोली
क्यों गुणों पर बुलबुल हो रही निसार हैं खड़ा पीछे
वह माली होशियार है मार कर गोली गिरा ली जाएगी
जब तेरी डोली
जब तेरा पर लोक में होगा हिसाब कैसे मुकरोगे बताओ
ऐ जनाब जब बही तेरी निकाली जाएगी
जब तेरी डोली
ए मुसाफिर क्यों बरसता है यहां यह मिला तुझको
किराए का मकान कोठरी खाली करा ली जाएगी
जब तेरी डोली

Radha Swami

गुरु के समान दाता नहीं सब जग मांगन हारा
सात दीप नौ खंड में सबका भरतारा रे
क्या राजा क्या बादशाह सबने हाथ पसारा रे
अपराधी तीरथ चला क्या तीरथ नहाया
कपट दाग धोया नहीं कोरा अंग झकोरा
कागज की नैया बनी लोहा जुड़ा है अपारा
सतगुरु पार उतारियो रे ऐसे दास पुकारा
पत्थर पूजत क्या मिला क्या पूजत पाया रे
अड़सठ का फल एक है द्वारे संत जीमाया
कहे कबीरा क्या खो गया क्या ढूंढते डोले
अंधे को दिखे नहीं रे तेरे घर में ही बोले

Radha Swami

राम रस मीठो रे भाई जाके पिये अमर हो जाए
आगे आगे लो लगे जी पीछे हरियल होए
बलिहारी का वृक्ष कीजी जड़ कांटे फल देय
राम रस मीठो रे भाई
कुल में रहूं भक्ति करूं कुल में ना भक्ति होए
दो घोड़न की पीठ पर मैंने चढ़तो न देखो कोई
राम रस मीठो रे भाई
कुल में रहो भक्ति करो कुल बिना भक्ति न होय
दो घोड़न की क्या चले जी चारन पै असवार
राम रस मीठो रे भाई
ध्रुव ने पियो पहलाद में पियो और पियो रविदास
दास कबीर ने ऐसों पियों और पिवन कि आस
राम रस मीठो रै भाई

Radha Swami

गुरु द्वारे आवां जावां मांगिया मुरादा पावां यह दिल चाहोन्दा
ओ मेरे सतगुरु जी डेरा ब्यास सोहणा लगदा नगरों विच
नगर बसाया मुक्ति का द्वार सारे जग जित बैठावे
उत में बैठूं जो देवों शो खावां
यह दिल चाहोन्दा
ओ मेरे सतगुरु जी तेरे स्वरूप ने मन मोह लिया
चरणों की गंगा विच मनके कुकर्मों को धो लिया
ना रखा में व्रत नवराते ना में तीरथ नहावां
यह दिल चाहोन्दा
ओ मेरे सतगुरु जी चरणा दे विच डिग पईयां
हो जाए लाख कसूर करना ना चरणों से दूर जी
फूला जैसे खिल खिल जावां कभी नहीं कुमलावां
यह दिल चाहोन्दा
ओ मेरे सतगुरु जी तेरे सरूप की दीवानीयां
नाम का अमृत पीकर हो गई अज मस्तानीयां
घट अंदर तेरी ज्योत जलावां रज रज दर्शन पांवा
यह दिल चाहोन्दा
ओ मेरे सतगुरु जी मीरा दीवानी तेरे नाम की
आकर के दर्शन देओ इतना ना तरसाओ जी
भवसागर से पार लगाओ गुण तेरे में गावां
यह दिल चाहोन्दा

Radha Swami

भर मारी रे बाना मेरे सद्गुरु बिरह लगाय के
पावन पंगा कानन बहिरा सूझत नहीं नैना
खड़ी-खड़ी पंथ निहारूं मरम न कोई जाना
सतगुरु औषध ऐसी दिना रोम रोम भई चैना
सतगुरु जस्या बेद ना कोई पूछो वेद पुराना
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर अमरलोक में रहना

Radha Swami

अनहद की धुन प्यारी साधु टेक
आसन पद लगाकर कर से मूंद कान की बारी रे
झीनी धुन मैं सूरत लगाओ होत नाद झनकारी रे
पहले पहले रल मिल बाजे पीछे न्यारी न्यारी रे
घंटा शंख बांसुरी वीणा ताल मृदंग नगारी रे
दिन दिन संत नाद जब बिकसे काया कांपत सारी रे
अमृत बूंद झरे मुख माही योगी जन सुख कारी रे
तन की शुद सब भूल जाता है घट में हुए उजारी रे
ब्रह्मानंद लीन मन होवे देखी बात हमारी रे

Radha Swami

बाला में बैरा गण हूंगी
जिन भैंषा मारो साहिब रीझे सोही भेष धरूंगी
सील संतोष धरूं घट भीतर समता पकड़ रहूंगी
जाको नाम निरंजन कहिए ताको ध्यान धरूंगी
गुरु के ज्ञान रंगूं तनु कपड़ा मन मुद्रा पेरूंगी
प्रेम प्रीत सूं हरि गुण गांऊं चरणन लिपट रहूंगी
या तन की में करूं किंगरी रसना नाम कहूंगी
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर संध्या संग रहूंगी

Radha Swami

बादला झुक आया भीजे मेरी काया का चीर
प्रेम घटा उठ आई है गगन से
तन मन भीज रहा गुरु रंग से
बरसे शीतल नीर बरसना मेरे मन भाया
भीजें मेरी काया
जहां-जहां बरसे दामिनी दमके बादल की घोर बिजली चमके
आठों पहर रहे शीर इंद्र जी झड़ लागा
भीगे मेरी काया का चीर
घर में रहो या बन में जाओ तीरथ जाओ या मलमल नहाओ
तन मन हुआ फकीर गगन में मेरा मन छाया
भानी नाथ संत का चेला उल्टा मारा पंथ दुहेला
शब्द का लागा बहीर गगन में मेरा मढ़ छाया

Radha Swami

सुनाएं तोय ब्रह्म ज्ञान को लटको
आवागमन की चिंता मिट जाए मीटे भरम को खटको
पहली धारण कर सत्संग की पीवे ज्ञान को गुटको
किए करम तेरे सब मिट जाएंगे फूटे पाप को मटको
दूजी धारणा कर सेवा की गुरु चरण में लिपटो
मान गुमान त्याग सब मन को अभिमान को पटको
तीजी धारण करो नाम की चढ़े बांसपर नटको
ऐसी सूरत भजन में लाओ छूटे जमको घटको
चौथी धारणा चेतन रहना माया देख मत भटको
कहत कबीर सुनो भाई साधु सतलोक को सटको

Radha Swami

करूं आरती राधा स्वामी तन मन सूरत लगाएं
थाल बना सत शब्द का अलख ज्योत फहराय
हंस सभी आरत करें सन्मुख दर्शन पाए
राधास्वामी दया कर दिन्हा अगम लखाय
अनहद धुन घंटा बजे शंख बजे मृदंग
ओंकार मंडल बना मेघनाथ गजंत
सुन मंडल धुन सारंगी किंगरी बजे अनूप
कोटी भान छवि रोम ईक ऐसा पुरुष स्वरूप
कंवलन की क्यारी बनी भंवर करें गुंजार
शेत सिंहासन बैठकर देखें पुरुष संभार
बिन बांसुरी मधुर धुन बाजे पुरुष हुजूर
सुन सुन हंसा मगन होए पीवे अमीरस मूर
रंग महल सत्पुरुष का शोभा अगम अपार
हंस जहां आनंद करें देखें बिमल बहार
अब आरत पूर्ण भई मन पाए विश्राम
राधा स्वामी चरण पर कोटि-कोटि प्रणाम

Radha Swami

हरि नाम सुमिर सुखधाम जगत में जीवन दो दिन का टेक
पाप कपट कर माया जोड़ी गर्व करें धन का
सभी छोड़कर चला मुसाफिर बास हुआ बन का
सुंदर काया देख लुभाया लाड करे तन का
छुटा स्वास बिखर गई देहि ज्यौं माला मन का
जोबन नारी लगे प्यारी मौज करें मन का
काल बली का लगे तमाचा भूल जाए ठन का
यह संसार स्वप्न की माया मेला पल छिन का
ब्रह्मानंद भजन कर बंदे नाथ निरंजन का

Radha Swami

सतगुरु मैं तेरी पतंग बाबा मैं तेरी पतंग
हवा विच उड़ती जावांगी
साइयां डोर हाथों छड्डी ना मैं कट्टी जावांगी
सतगुरु मैं तेरी पतंग
बड़ी मुश्किल दे नाल मिलिया मेनू तेरा द्वारा है
सैयां तेरा द्वारा है
मैनू इको तेरा आसरा नाल तेरा सहारा है
साइयां तेरा सहारा है
हुण तेरे ही भरोसे सैईंया तेरे ही भरोसे
हवा विच उड़ती जावांगी
साइयां डोर हाथों छड्डी ना मैं कट्टी जावांगी
सतगुरु मैं तेरी पतंग
एना चरणा कमला नालो मेनू दूर हटाए ना
साइयां दूर हटाई ना
इस झूठे जग दे अंदर मेरा पैचा लाई ना
साइयां पैच्चा लाई ना
जे कट गई तां सतगुरु
फिर मैं लूटी जावांगी हो फिर मैं लूटी जावांगी
साइयां डोर हाथों छड्डी ना मैं कट्टी जावांगी
सतगुरु मैं तेरी पतंग
आज मिलीया बुआ आके मैं तेरे द्वार दा
साइयां तेरे द्वार दा
हथ रख दे एक बारी तू मेरे सिर ते प्यार दा
साइयां सिर ते प्यार दा
फिर जन्म मरण दे गिड़े तो मैं बचती जावांगी
हवा विच उड़ती जावांगी
साईयां डोर हाथों छड्डी ना मैं कट्टी जावांगी
सतगुरु मैं तेरी पतंग

Radha Swami

रोम रोम में रमने वाले राम मिलाया है सतगुरु ने
भवसागर से पार तार दे जहाज बनाया है सतगुरु ने
मोह माया के फंसे हुए के बंधन काटन आया से
बिछड़े प्रभु पल में मिल जा सुख बाटन न से
दुखिया के दुख दूर करन का सतगुरु ने ठेका ठाया से
रोम रोम में
जनम जनम की बिछड़ी थी मैंने अपने घर का बेरा ना
जोत जलाई करी आरती हुआ दूर अंधेरा ना
बरसन लागा नूर चोगरदे हाथ हलाया सतगुरु ने
रोम रोम में
हीरा जन्म मिला अनमोल सांस लगा लो सुमिरन में
बिछड़े प्रभु पल में मिल जा सीलक हो जा तन मन में
दुख खड़ा-खड़ा के सोचे से पास बुलाया सतगुरु ने
रोम रोम में
रतन अनमोल दिया सतगुरु ने कर दिया साहूकार
मुझे पूरी कर दी मंकी चाही रंग बरसाओ सदगुरु ने
कहत कबीर गुरा ने दे दिया जन्म जन्म का प्यार मुझे
राधा स्वामी अंतर्यामी जन्म मरण दुख दूर करें
रोम रोम में

Radha Swami

साधु भाई सद्गुरु सेन लखाई पिंड ब्रहमंड में
खेल खेल के अमर जागीरी पाई
करता कूं धरता कर पकड़े आए रहे उर माही
निर्बंधन निर्गुण निर्धारा सत्य समझिए वाही
समझो सत्य सब विधि जानो प्रगट भेद बताई
अलख कला वो लिखें अविनाशी आवागमन न आई
आवागमन मिटे मिले अविनाशी सोहे शबर सदाई
समता सहज मिले सर भंगी हंस रहा थीर थाई
जीया राम मिला गुरु पूरा निर्भय धाम बताई
बन्ना नाथ अधर किया आसन कब हो काल न खाई
साधु भाई सत गुरु सेन लखाई

Radha Swami

पिया मिलन के काज आज जोगन बन जाऊंगी
हारसिंगार छोड़कर सारे अंग विभूति रमाऊंगी
सिंगी सेल पहर गले में अलख जगाऊंगी
काशी मथुरा हरिद्वार सब तीरथ नहाउंगी
जाए हिमाचल करूं तपस्या तन को सुखाऊंगी
ऋषि मुनियों के आश्रम जाकर खोज लगाऊंगी
अंदर बाहर सब जग ढूंढूं नहीं अटकाऊंगी
निस दिन उसका ध्यान लगाकर दर्शन पाऊंगी
ब्रह्मानंद पिया घर जा लाकर मंगल गांऊंगी

Radha Swami

मेरा कियो री भ्रम सब दूर मैं वारी जाऊं सतगुरु की
वारी जाऊं सतगुरु की बलिहारी जाऊं सतगुरु की
प्याला प्याला प्रेम का घोर अमी रस मूर
चढ़े खुमारी नाम की हो गई चकनाचूर
विमल प्रकाश आकाश में लख देखा शीश सूर
मगन भयो मन गगन में सुनके अनहद तूर
ममता घटी क्षमता बढ़ी उर अंदर भरपूर
राग द्वैत जब से मिटियो ऐसो मन भयो मधुर
शब्द सूनत यमदूत के मुख में आ गई धूर
आए मिले धर्मदास को सद्गुरु हाल हजूर

Radha Swami

ना जाने तेरा साहिब कैसा है
मस्जिद भीतर मुल्लाह पुकारे क्या साहिब तेरा बहरा है
चींटी के पग नेवर बाजे सो भी साहिब सुनता है
पंडित होय के आसन मारे लंबी माला जयता है
अंतर तेरे कपट कतरनी सो भी साहिब लखता है
ऊंचा नीचा महल बनाया गहरी नींव जमाता है
चलने का मंसूबा नाही रहने को मन करता है
कोड़ी कोड़ी माया जोड़ी गाढ़ी जमीन में धरता है
जिसे लेना है सो ले जाएंगे पापी बह बह मरता है
हीरा पाए परख नहीं जाने कोड़ी परखन करता है
कहत कबीर सुनो भाई साधु हरि जैसे को तैसा है

Radha Swami

हो तोय बेच दूं नींद‌ड़ली जो कोई तेरो ग्राहक होए
पीसे शेर टके का पसेरी रुपया का मन दोय
हिला दे दे ग्राहक तोड़ू घालूं उधारी तोय
बीच बाजार बिछायत मांडू ऊंची खोलूं हॉट
दे दे झोला बढ़ती तोलूं बढ़ता राखूं बाट
सोवत सोवत सब दिन बित्यो दियो जमानों खोय
निंद्रा बेरन ता घर जाओ राम भगत ना होए
आऔ साजन मुड़ गयो रे में बैरन रही सोए
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर राखि नेन संमोय

Radha Swami

क्या सोवै गफलत के मारे जाग जाग उठी जागरै
और तेरे कोई काम ना आवे गुरु चरणन उठि लागू रे
उत्तम चोला बना अमोला लगत दाग पर दाग रे
दो दिन का गुजरान जगत में जरत मोह की आगरे
तन सराय में जीव मुसाफिर करता बहुत दिमाग रे
रेन बसेरा करीले डेरा चलन सवेरा ताक रें
यह संसार विषय रस माते देखो समझ विचार रे
मन भंवरा तज विष के वन को चल बेगम के बागरे
केंचुल कर्म लगाई चित में हुआ मानुष ते नागरे
बैठा नहीं समझ सुखसागर बिना प्रेम बैराग रे
साहिब भजें शो हंस कहावे कामी क्रोधी कागरे
कहे कबीर सुनो भाई साधु प्रगटे पूर्ण भाग रे

Radha Swami

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे
बिन करताल पखावज बाजे अनहद की झंकार
बिन सुर राग छतीसूं गांवें रोम रोम रणकार
सील संतोख को केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर बरसत रंग अपार
घट के पट सब खोल दिए हैं लोक लाज सब डार
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर चरण कंवल बलिहार

Radha Swami

अब तो मेरा राम ना दूसरा न कोई
माता छोड़ी पिता छोड़े थोड़ा सगा भाई
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई
संत देख दौड़ आई जगत देख रोई
प्रेम आंसू डार डार अमरबेल बोई
मार्ग में तारग मिले संतराम दोई
संत सदा शीश राखुं राम हृदय होई
अंत में से तंत काढियो पीछे रही सोई
राणा भेज्या विष का प्याला पीवत मस्त होई
अब तो बात फैल गई जाने सब कोई
दास मीरा लाल गिरधर होनी हो सो होई

Radha Swami

मुझे लगन लगी प्रभु पावन की
पावन कि घर आवन की
छोड़ काज अरू लाज जगत की
निशदिन ज्ञान लगा वन की
सूरत उजाली खुल गई ताली
गगन महल में जावण की
झिलमिल कारी ज्योति निहारी
जैसे बिजली सावन की
बाई मीरा के प्रभु गिरिधर नागर
हरक निरख गुण गावन की

Radha Swami

राणा जी अब ना रहूंगी तेरे हटकी
साध संग मोहि प्यारा लागे लाज गई घूंघट की
पीहर मेड़ता छोड़ा अपना सुरत निरत दोऊ चटकी
सद्गुरु मुकुर दिखाया घट का नाचूंगी दे दे चुटकी
हारसिंगार सभी ल्यो अपना चूड़ी करकी पटकी
मेरा सुहाग अब मोकू को दरशा और ना जाने घट की
महल किला राणा मोहे ना चाहे सारी रेशम पटकी
हुई दीवानी मीरा डोले केस लटा सब छिट की

Radha Swami

मेरे पूर्ण पिछले भाग री पिया आन मिले फागुन में
इत्र गुलाल ज्ञान की रोली बांट रहे पिया भर भर झोली
आओ री मेरे संग की सहेली सोने में दें दियो आगरी
कुछ नफा मिले जागन में मेरे पूर्ण पिछले भाग री
तुम भी पाग रंगों पिया रंग में हम भी चिर रंगे तेरे रंग में
दोनों हो जाए एक ही रंग में धब्बा रहे ना दागरी
में हो जाऊं बेदागन में मेरे पूर्ण पिछले भाग री
गगन मंडल में अनहद बाजे तन में तार तंदूरा साजे
मोहन के मुख मुरली बाजे छत्तीसों राग री
में हो जाऊं बैरागन में मेरे पूर्ण पिछले भाग री
फागुन के दिन सुख से बीते मैं हारी मेरे साहिब जीते
गंगाराम अमीरस पीके खेल चुके दोऊ फागरी
ना हंस मिले कागन में मेरे पूर्ण पिछले भाग री

Radha Swami

रतनन की माला जी साहेब रतनन की माला जी
बिरला संतन ते पाई है रतनन की माला जी
मूल कमल चौकी बनी पूर्ण बनी धर्मशाला
वापे सतगुरु पोणिया गुरु दीनदयाला जी
अधर धार बंगला बना हीरे जड़े हैं अपारा जी
इन हिरन की जोत से परखो शब्द हमारा जी
चांद सूरज मन का किया पोया सुरता का धागा जी
हरदम हरदम रट गया बाजी जम से कर आया जी
सात सुन के ऊपरा गई है सूरता अपारा जी
कहे कबीरा धर्मदास से सतलोक हमारा जी

Radha Swami

राम रंग लागो मेरे दिल को धोको भागो
जब थी बंदी मान गुमानी पीजों मुखडन न बोल्यो
अब भई बंदी खाक बराबर साहिल अंतर खोलिऔ
पीजों बोलिऔ अंतर खोलिऔ सजड़िया सुख दिनों
मैं अपने प्रीतम संग राजी प्रेम पियालो पीनौ
लोक लाज कुल की मर्यादा तोड़ दिया सोई धागौ
हरि जना ने हरि मिले ज्यूं सोनो मिलियो सुहागो
सांची से मेरा साहिब राजी झूठे से मन भागो
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर भाग हमारो जागो

Radha Swami

गली तो चारों बंद हुई मैं हरी से मिलूं कैसे जाएं
ऊंची नीची राह रपटीली पांव नहीं ठहराय
सोच सोच पग धरूं जतन से बार-बार डिग जाए
ऊंचा नीचा महल पिया का महासू चढ़ोना जाए
पिया दूर पंथ म्हारो झीणो सूरत झोकोला खाए
कोस कोस पर पहरा बैठया पेड़ पेड़ बट मार
या बिगना कैसी रचदीनी दूर बसायो म्हारो गांव
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर सतगुरु दई बताएं
जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाए

Radha Swami

ओ कैसे पिया की अटारी चढ़ो जाए नशेनी बिना भाई ली
आशा साथ हमारी कहिए पहरा रही लगाए
तृष्णा नन्द बड़ी छर छनदी सौबत लई जगाए
नसेनी बिना
काम क्रोध दो जेठा कहिए अपने हित लगाए
अहंकार से ससुर हमारे पौढ़ी पे खाट बिछाए
नसेनी बिना
पांच साथी एक ठाड़े होके कर रही मति उपाय
सतगुरू साईं एसे कह गए हरि से ध्यान लगाएं
नशेनी बिना

Radha Swami

री मेरे पार निकस गया सतगुरु मारया तीर री
विरह भाल लागी उर अंतरी व्याकुल भया शरीर
ईत उत चित्त चले नहीं कब हूं डारी प्रेम जंजीर
के जाने मेरो प्रीतम प्यारो और न जाने पीर
कहां करूं मेरा बस नहीं सजनी नैन झरत दोऊ नीर
मीरा कहै प्रभु तुम मिलिया बिन प्राण धरत नहीं धीर

Radha Swami

आज मेरे सतगुरु आए मेहमान
तन मन जियरा करूंगी कुर्बान
जब मेरे सतगुरु आए बागन बीच
फूलन भर की माला डालूं हीरा पन्ना लाल
हरे हरे गोबर अंगना लीपाऊं
चंदन चौकी डार गुरु के दुख पर वारूं पाव
चावल रांधु हर को हरी मंगोरा दाल
ऊपर से परोसूं हर को मुट्ठी भर खांड
थाल परोसन चाली सांवल नार
जीमा मेरे सतगुरु ढोरू थारे ब्यार
तन का बिछौना मनकी निवार
शो मेरे सतगुरु दांबू प्यारे पांव
कहत कबीर सुन धर्मदास की नार
गुरु की कृपा से हो जा भवसागर से पार
आज मेरे सतगुरु आए मेहमान

Radha Swami

सुन री सखी चढ़ महल विराज जहां तेरे प्रीतम बैठे आज
कर विलास और जग से भाज तखत बैठ और कर वहां राज
हनसन का जहां जुड़ा समाज तू उन मिलकर अपना काज
गुरु चरण पकड़ तज कुल की लाज मन दर्पण बहु विधि कर मौज
सुरत निरत का लेकर छाज छांट फटक डालो घुन नाज

Radha Swami

साधु भाई सुमरन करो सवायो
बिन सुमरन कुछ नहीं मिलेगा भवसागर दुख पायो
साधु भाई सुमिरन करो
किस कारण तुम चलकर आए किस कारण धरी काया
किस कारण तुम ध्यान करत है किसमे रहे समाया
साधु भाई सुमरन
इच्छा कारण चलकर आए उत पत कारण काया ध्यान धरत है
समझ के कारण सुन में रहे समाया
साधु भाई सुमरन
कौन सुन तेरी उत पत कहिए कौन सुन घर पाया
कौन सुन में शहज समाया कौन सुन बहं आया
साधु भाई सुमरन
जड़ से सुन मेरी उत पत कईये अफर सुन्य घर पाया
बेगम सुन्य में सहज समाया सुन्य बह आया
साधु भाई सुमरन

Radha Swami

सूरत पनिहारी सतगुरु प्यारी चली गगन के कूप
प्रेम डोर ले पनघट आई भरी गगरिया खूब
शब्द पहचान अमीरस पागी देखा अद्भुत रूप
नगर अजायब मिला डगर में जाहं छाहं नहीं धूप
पहुंची जाएं अगमपुर नामी दरश किया राधा स्वामी भूप

Radha Swami

मेरे सतगुरु चतुर सुजान उन्हीं की में दासी
योगिन बनकर भरमत डोली देखे चारों धाम वृंदावन
और मथुरा नगरी मिले नहीं घनश्याम रही में पिया प्यासी
मेरे सतगुरु
घाट घाट गंगा के नहाए और नहाई प्रयाग अड़सठ
तीरथ भरमत डोली ऐसा किनो त्याग मिले ना अविनाशी
मेरे सतगुरु
बन में जाएं तपस्या कीनी भके पात फल-फूल क्षमा करो
अब दर्शन दीवो माफ करो सब भूल करे धनिया हंसी
मेरे सतगुरु
सूरत चढ़ाकर काया दुबोची दिखे अब ब्राहमाडं नाद बिंदु
कला मिलकर के मोय दिखे प्रतिबिंब छाई मिथ्या भाषी
मेरे सतगुरु
पूर्ण संत सतगुरु पाए दिओ गाए उपदेश कर मिलाएं
दिओ पारस से मिटे सकल संदेश दुविधा सब नाही
मैरे सतगुरु

Radha Swami

करो रे मन वा दिन की तदबीर टेक
जब जमराजा आनी पड़ेंगे नेक धरत नहीं धीर
मुंगरीन मारी के प्राण निकासत नैनन भरी आओ नीर
भवसागर एक अगम पंत है नदिया बहुत गंभीर
नाव ना बेड़ा लोग धनेरा खेवट है बेपीर
घर तिरिया अर्धांगी बैठी मातु पिता सुतबीर
माल मुलुक की कौन खलावै संग न जात शरीर
लेके बोरत नरक कुंड में व्याकुल होत शरीर
कहत कबीर नर अब से चेतो माफ हुए तकसीर

Radha Swami

तरसे मेरे नैन हैली राम मिलन कब होयेगो टेक
पिया दर्शन बिन क्यों जीऊं री हेली कैसे पाऊं चैन
तीरथ व्रत बहुते किए रि चित दे सुने पुराण
बाट निहारत ही रहूं री हैली सुधि नहीं लीनी आए
यह जोबन यौही चलो री चालो जन्म सिराय
बिरहा दल साजे रहे री हैली छिन छिन में दुखी देहि
मन लालन के बस परो भई भाक सी देही
गुरु सुखदेव कृपा करो जी हैली दीजे बिरह छुटाए
चरणदास पिय सूं मिले शरण तुम्हारी धाय

Radha Swami

दर्द दुखी में बिरहिन भारी दर्शन की मोहि प्यास करारी
दर्शन राधास्वामी छिन छिन चाहू बार बार उन पर बल जाऊं
वह तो ताड़ मार फटकारे मैं चरनन पर शीश चढ़ाऊं
निर्धन निर्बल क्रोधित मानी ओगुन अपने अब पहचानी
स्वामी दीनदयाल हमारे मौ सौ अधम को लीन्ह उबारे
में जिददीन दमदम हठ करती मौज हुकुम में चित नहीं धरती
दया करो राधास्वामी प्यारे ओगुण बक्सों लेवो उबारे

Radha Swami

मेरी नजर में मोदी आया है
कोई कहे हलका कोई कहे भारी दोनों भूल भुलाया है
ब्रह्मा विष्णु महेशुर थाके तीन्हूं खोज ना पाया है
शंकर शेष ओ सारद हारे पढि शटि गुन बहु गाया है
है तिल के तिल तिल भीतर निरले साधु पाया है
चहूं दल कवंल त्रिकुटी साजे ओंकार दर्शाया है
रंरकार पर सेत सुन मध खटदल कवंल बताया है
पारब्रह्म महा सुन मझारा सोई निहअक्षर रहाया है
भंवर गुफा ने सोह राजे मुरली अधिक बजाया है
सतलोक सत्पुरुष विराजे अलख अगम दोउ भाया है
पूरख अनामी सब पर स्वामी ब्रहमडं पार जो गाया है
यह सब बातें देहि माही प्रतिबिंब अंड जो पाया है
प्रतिबिंब पेंट ब्रहमडं है नकली असली पार बताया है
कहे कबीर सतलोक सार है यहां पूरख विचार पाया है

Radha Swami

मेरे सैयां निकल गए मैं ना लड़ी थी
ना में बोली ना में चाली ओढ़ के चुनरिया मैं तो अकेली
पड़ी शीश महल के दस दरवाजे कौन सी खिड़की खुली
मेरे संग की सात सहेली जाने कुछ उनसे कहीं कहे कबीर
सुनो भाई साधो ऐसे भ्याता से मैं तो कुंवारी वाली

Radha Swami

ईत उत का चित छोड़ पिया जी से मिल ले प्यारी
साद री मेहंदी हाथ लगा ले री हैली
भ्रम को घूंघट खोल दुर मासे दूर हटा ले री हेली
ईत उत का
रतन जतन की बिंदीया लगा ले री हेली
मुतियन मांग भराय निर्गुण सुरमा सराय ले री हैली
इत उत का
ज्ञान ध्यान की गुदड़ी बना ले री हैली
सुरता का धागा डाल निर्गुण सेज बिछाले री हैली
ईत उत का
गगन मंडल में अजब झरोखा हैली
ऊंचे से चढ़कर देख अनहद नाद बजा ले री हैली
ईत उत का
कहत कबीर कमाल जी की चेली रे होली
साधु की शरण में जाएं आवागमन मिटा ले री हैली
ईत उत का

Radha Swami

मेरा बेड़ो लगा दीजो पार गुरुजी में अरज करूं
अब तो निभाए सरेगी गुरुजी बाहं गहै कि लाज
समरथ शरण तुम्हारी साईया सरब सुधारण काज
भव सागर संसार अपरबल जामे तुम हो जहाज
निशआधारा आधार जगतगुरु तुम बिन होय अकाज
जुग जुग भीर हरि भक्तन की दीनी मोक्ष समाज
मीरा शरण गही चरणन की लाज रखो महाराज

Radha Swami

महल में प्यारा है लखलेओ गुरुजी की सेन
पांच पचीसन में नाए सांची सुरता तीन से न्यारा है
लख लेऔ
नावी कमल लागो तार सांची सुरता
चढ़ेगा हरि का प्यारा है
लख लैऔ
इंगला पिंगला नार सांची सुरता
सुषुम्ना धारा है
लख लैऔ
त्रिवेणी तोरण भार उतर चल पल्ली पारा
लख लैऔ
मिला श्रीनाथ गरीब सांची सुरता
दुर्बलिया गुरु का प्यारा है
लखलेओ

Radha Swami

शब्द झड़ लागो रे हेली जब बरसन लागो रंग
जन्म मरण की दुविधा भागी सुमिरत नाम भजन लौ लागी
सत्य धर पायो री हैली जब बरसन लागो रंग
गई है सूरत पश्चिम दरवाजा त्रिकुटी महल पुरुष एक राजा
यहां अनहद की झंकार बजे वहां बाजे री हेली
जब बरसन लागो रंग
जाय पिया के संग में सोई संका शौक रहा ना कोई
मेरे मिट गए करम क्लेश भरम भय भगोरी हैली
जब बरसन लागो रंग
शब्द विहंग में चाल हमारी कहत कबीर सतगुरु
दई तारी यहां झिलमिल झिलमिल होए काल
विष भागो री हेली जब बरसन लागो रंग

Radha Swami

डगर मेरी रोक लई या जुल्मी काल ने
मैं पनिहारी अमि अधारी सद्गुरु करे संभाल
गगरी सूरत डोर निज करनी छूट गया जंजाल
उर्ध मुखी कुईया चढ़ झांकी भरत अधर रस हाल
भेद गुप्त एक सतगुरु देना पहुंची हसंन ताल
राधास्वामी अगम अनामी मुझ पर हुए दयाल
सूरत शब्द मार्ग दर्शाया कांटा मन का जाल

Radha Swami

करम गति टारे नहीं टरी टेक
मुनि वशिष्ट से पंडित ज्ञानी
शोध के लगन धरी सीता हरण
मरण दशरथ को वन में विपत्ति परी
कहां वह फंदा कहां वह परधी
कहां वह मिरग चरी सीता को हर ले गयो
रावण सोने की लंका जरी नीच हाथ
हरिश्चंद्र बिकाने बलि पाताल धरि
कोटी गाय नित पुनन करत नृप गिरगिट
जॉनी परी पांडव जिनके आपु सारथी
तिन पर बिपति परी दुर्योधन को गर्व घटाओ
जदु कुल नास करी राहु केतुओ भानु चंद्रमा
विधि संजोग परी कहत कबीर सुनो
भाई साधु होनी होके रही

Radha Swami

साधु भाई हरि को हरी में देखा टेक
आप माल और आप खजाना
आप ही खरचन वाला आप गली में
भिक्षा मांगे हाथ में लेकर प्याला
आपे मदिरा आपे भट्टी आपे चुवाने वाला
आपे सुराई आपे प्याला आपे फिरे मतवाला
आपे नैना आप सेना आपे कजरा काला
आपे गोद में आपे खिलावे आपे मोहन वाला
ठाकुर द्वारे ब्राह्मण बैठा मक्का में दरबेसा
कहत कबीर सुनो भाई साधो हरी जैसे को तैसा

Radha Swami

मोरी चुनरी में परि गयो दाग पिया॥टेक॥
पाँच तत्त्व की बनी चुनरिया, सोरह सै बँद लागे जिया॥1
यह चुनरी मोरे मैके तें आई, ससुरे में मनुवा खोय दिया॥2
मलि-मलि धोई दाग छूटे, ज्ञान को साबुन लाय पिया॥3
कहै कबीर दाग तब छुटिहैं, जब साहेब अपनाय लिया॥4

Radha Swami

बीत गये दिन भजन बिना रे  
भजन बिना रे, भजन बिना रे
बाल अवस्था खेल गवांयो
जब यौवन तब मान घना रे
लाहे कारण मूल गवाँयो
अजहुं गयी मन की तृष्णा रे
कहत कबीर सुनो भई साधो
पार उतर गये संत जना रे

Radha Swami

रे दिल गाफिल गफलत मत कर,
एक दिना जम आवेगा
सौदा करने या जग आया,
पूँजी लाया, मूल गॅंवाया,
प्रेमनगर का अन्त पाया,
ज्यों आया त्यों जावेगा १॥
सुन मेरे साजन, सुन मेरे मीता,
या जीवन में क्या क्या कीता
सिर पाहन का बोझा लीता,
आगे कौन छुडावेगा २॥
परलि पार तेरा मीता खडिया,
उस मिलने का ध्यान धरिया,
टूटी नाव उपर जा बैठा,
गाफिल गोता खावेगा ३॥
दास कबीर कहै समुझाई,
अन्त समय तेरा कौन सहाई,
चला अकेला संग कोई,
कीया अपना पावेगा ४॥
Radha Swami

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले
बोले मधुरे बानी।।
केसव के कमला वे बैठी
शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं
तीरथ में भई पानी।।
योगी के योगन वे बैठी
राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी
काहू के कौड़ी कानी।।
भगतन की भगतिन वे बैठी
बृह्मा के बृह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो
यह सब अकथ कहानी।।

Radha Swami

साधो ये मुरदों का गांव
पीर मरे पैगम्बर मरिहैं
मरि हैं जिन्दा जोगी
राजा मरिहैं परजा मरिहै
मरिहैं बैद और रोगी
चंदा मरिहै सूरज मरिहै
मरिहैं धरणि आकासा
चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं
इन्हूं की का आसा
नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं
मरि हैं सहज अठ्ठासी
तैंतीस कोट देवता मरि हैं
बड़ी काल की बाजी
नाम अनाम अनंत रहत है
दूजा तत्व होइ
कहत कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो ना कोई

Radha Swami

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा ।।
आसन मारि मंदिर में बैठे,
ब्रम्ह-छाँड़ि पूजन लगे पथरा ।।
कनवा फड़ाय जटवा बढ़ौले,
दाढ़ी बाढ़ाय जोगी होई गेलें बकरा ।।
जंगल जाये जोगी धुनिया रमौले
काम जराए जोगी होए गैले हिजड़ा ।।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ो रंगौले,
गीता बाँच के होय गैले लबरा ।।
कहहिं कबीर सुनो भाई साधो,
जम दरवजवा बाँधल जैबे पकड़ा ।।

Radha Swami

बादल देख डरी हो, स्याम, मैं बादल देख डरी
श्याम मैं बादल देख डरी
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी
जित जाऊं तित पाणी पाणी हुई सब भोम हरी
जाके पिया परदेस बसत है भीजे बाहर खरी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर कीजो प्रीत खरी
श्याम मैं बादल देख डरी

Radha Swami

पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥
विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥

Radha Swami

मैं तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।

Radha Swami

ऐसा ऐसा लगन लगाया गुरु जी ने
ऐसा ऐसा लगन लगाया है
जनम जनम से कुंवारी या सुरता
अब के ब्याह रचाया है
अरे हरि नाम की हल्दी लगाई चित का चंदन मिलाया है
दया धर्म की मेहंदी लगाई लाल लाल रंग आया है
ऐसा ऐसा लगन लगाया गुरु ने
आला लीला बांस कटाया मोतिया सुं मंडप सजाया है
अरे पांच पच्चीसा बैठ सहेलियां मिलकर मंगल गाया है
ऐसा ऐसा लगन लगाया गुरु जी ने
अरे धूम धड़ाका से चली बराता बाजा बैंड बजाया है
आगे आगे ढोल बजत हैं बारातियों को नचाया है
ऐसा ऐसा लगन लगाया गुरु जी ने
अरे सूरत नुरत दोउ फेरा फरिया कन्यादान कराया है
अरे सतगुरु शरण धर्मदास बोल्या बिंद परण ने आया है
ऐसा ऐसा लगन लगाया गुरु जी ने

Radha Swami

गुरु के चरण सदा चित लावो हृदय ध्यान धर शीश नवावौ
धूप दीप परिक्रमा दीजे तन मन धन सब अर्पण कीजै
गुरु रटे ब्रह्मा सुर तैंतीस गुरु बिन को जाने जगदीशा
गुरु है नेम धर्म की धारा गुरु है आवागमन निवारा
गुरु है ज्ञान ध्यान के स्वामी गुरु है सबकी अंतर्यामी
गुरु बिना कोई नहीं धंधा गुरु बिना जग भटकत है अंधा
गुरु है सब तीरथ व्रत पूजा गुरु बिन और देव नहीं दूजा
गुरु तज औरन के गुण गावे जो नर सीधा यमपुरी ही जावे
गुरु के मंत्र हृदय नहीं धरता सहज ही जाए नर्क में पड़ता
गुरु नाम को जो कोई त्यागे कोडी होए होए सर भंगी
सात जन्म तक कोड ही पावे गुरु निंदा जो करे करावे
जाको मुख गुरू नि न्दा होई ताको मुख देखो मत कोई

Radha Swami

मैं वारी जाऊं रे , बलिहारी जाऊं रे
मारे सतगुरु आंगड़ आया, मैं वारी जाऊं रे

सतगुरु आंगड़ आया, हे गंगा गोमती लाया रे
मारी निर्मल हो गयी काया, मैं वारी जाऊं रे...

सब सखी मिलकर हालो, केसर तिलक लगावो रे
घड़ी हेत सूं लेवो बधाई, मैं वारी जाऊं रे

सतगुरु दर्शन दीन्हा, भाग उदय कर दीन्हा रे
मेरा भरम वरम सब छीना, मैं वारी जाऊं रे

सत्संगी बन गयी भारी, मंगला गाऊं चारी रे
मेरी खुली ह्रदय की ताली, मैं वारी जाऊं रे

दास नारायण जस गायो, चरणों में सीस नवायों रे
मेरा सतगुरु पार उतारे, मैं वारी जाऊं रे

Radha Swami

दरशन दे ठाढ़ दरबार
तुझ बिन सुधी. कौन ले हमार

तुम धन दानी, उदार त्यागी
सबनन सुनिया. सुयश तुम्हार
मांगू किसिसे. सब-रंग देखे.
तूही मेरो निसतार

जयदे. नामा. विप्र सुदामा.
तिन पर किरपा भई अपार
कहत कबीर तू. समरथ दाता.
चार पदारथ देवनहार 

Radha Swami

जनम तेरा, बातों ही बीत गयो..
जनम तेरा बातों ही, बीत गयो..
तुने, कबहुँ , राम कह्यो..
रे तुने, कबहुँ कृष्ण कह्यो..

पांच बरस का, भोला रे भाला.
अब तो. बीस भयो..
मकर पचीसी, माया कारन
देश विदेश गयो..

ती. बरस की, जब मति उपजी.
नित नित, लोभ नयो..
माया जोरी, लाख करोरी
अजहु प्रीत भयो..

वृद्ध भयो. तब, आलस उपजी.
कफ नित, कंठ रह्यो..
संगति कबहूं, नाही कीन्ही
बिरथा जनम लियो..

ये संसार मतलब का, लोभी
झूठा, ठाठ रच्यो..
कहत कबी. समछ मन मूरख
तू क्यों भूल गयो..

Radha Swami

नींद से अब जाग बंदे
राम में, अब मन रमा..
निरगुना. से लाग बंदे
है वही. परमात्मा

हो गई है, भोर कब से
ज्ञान का, सूरज उगा..
जा. रही, हर सांस बिरथा
सांई सुमिरन में, लगा..

फिर पायेगा, तुं अवसर
कर ले अपना. तू भला..
स्वप्न के बंधन है झूठे
मोह से, मन को छुड़ा..

धार ले, सतनाम साथी
बन्दगी. करले जरा..
नैन जो. उलटे कबीरा
सांई तो. सन्मुख खडा..

Radha Swami

गुरुकृपाजन, पायो मेरे भाई
रामबिना कछु, जानत नाहीं

अंतर रामही,  बाहिर रामही
जंह देखों तहं, रामही रामही

जागत रामही, सोवत रामही
सपने में देखूं, राजा रामही

एक जनार्दनीं, भावही नीका
जो देखो वो,  राम सरीका

Radha Swami

सत्य नाम का, सुमिरन कर ले
कल जाने क्या होय
जाग जाग नर, निज आश्रम में
काहे., बिरथा सोय
सत्य नाम का, सुमिरन कर ले रे...

जेहि कारन तू जग में आया
वो नहिं तूने कर्म कमाया
मन मैला का. मैला तेरा
काया. मल मल धोय

दो दिन का है, रैन बसेरा
कौन  है मेरा, कौन  है तेरा
हुवा सवे.रा, चले मुसाफिर
अब क्या नयन, भिगोय

गुरू का शबद जगाले मनमें
चौरासी से छूटे क्षन में
ये तन बार, बार नहिं पावे
शुभ अवसर, क्यों खोय

ये दुनिया.. है, एक तमाशा
कर नहिं बंदे.इसकी आशा
कहै कबीर, सुनो भाई साधो
सांई भजे, सुख होय

Radha Swami

मेरी, सुरति सुहा.गन जाग री
जाग री. हो जाग री..

क्या तू सो.वै, मोह नीदमें.., क्या तू सोवै
उठ के भजन बिच . री
जाग री, हाँ.. जाग री

अनहर शबद, सुनो चित देके.., सुनो चित देके.
उठट मधुर धुन राग री
जाग री, हाँ.. जाग री

चरण शीश धर, विनती करिओ
पायेगी अचल सुहाग री
जाग री, हाँ.. जाग री

कहत कबी.रा, सुनो भाई सा.धो.., सुनो भाई सा.धो
जगत पीठ दे, भाग री
जाग री, हाँ.. जाग री

Radha Swami

हमा.रे, गुरु मिले, ब्रह्मज्ञानी
पा., अमर निशानी..

का. पलट गुरु, हंसा किन्है
दीन्हीं, नाम निशानी..
हंसा. पहुचे.. सुख सागर पर
मुक्ति भरै, जहाँ पानी..

जल बिच कुंभ, कुंभ बिच जल है
बाहर, भीतर पानी..
विकस्यो, कुंभ जल, जल ही समाना
ये गति, विरले ने जानी..

है अथा., थाह संतन में
दरिया, लहर समानी..
जीवर, जाल डाल का करिहे
जब, मीन पिघल, भै पानी..

अनु.भव का ज्ञान, उजलता की वानी
सोहै, अकथ कहानी
कहै कबीर गुंगे की सेन
जिन जानी, उन मानी

Radha Swami

साधो, देखो जग बौराना
साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना
हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना
बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना
आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना
माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर जाना
घर-घर मंत्र जो देन फिरत हैं, माया के अभिमाना
गुरुवा सहित सिष्य सब बूढ़े, अन्तकाल पछिताना
बहुतक देखे पीर-औलिया, पढ़ै किताब-कुराना
करै मुरीद, कबर बतलावैं, उनहूँ खुदा जाना
हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, दोनों घर से भागी
वह करै जिबह, वो झटका मारे, आग दोऊ घर लागी
या विधि हँसत चलत है, हमको आप कहावै स्याना
कहै कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना

Radha Swami