Friday 11 January 2019

कौन जाने गुण तेरे सतगुरु

कौन जाने गुण तेरे सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे
कौन जाने गुण तेरे सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे

ऊंचे अपार बेअंत स्वामी
ऊंचे अपार बेअंत स्वामी
कौन जाने गुण तेरे सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे

गावत ऊधरे सुनते ऊधरे
गावत ऊधरे सुनते ऊधरे
बिन से पाप कनेर सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे

पशु परेत मुगद के तारे
पशु परेत मुगद के तारे
पाहन पार उतारे सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे

नानक दास तेरी सरनाई
नानक दास तेरी सरनाई
सदा सदा बलिहारै सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे सतगुरु
कौन जाने गुण तेरे 

गुरु मोहे अपना रूप दिखाओ, गुरु मोहे अपना रूप दिखाओ

गुरु मोहे अपना रूप दिखाओ, गुरु मोहे अपना रूप दिखाओ,
यह तो रूप धरा तुम सरगुन, जीव उवार कराओ,
रूप तुम्हारा अगम अपारा, सोइ अब दर्शाओ,
देखूं रूप मगन होये बैठूँ,  अभय दान दिलवाओ,
 यह भी रूप प्यारा मोको, इस ही से उसको समझाओ,
बिन इस रूप काज नहीं होइ, कियों कर वही लखवाओ,
ता ते महिमा भरी इसकी, पर वह भी लखवाओ,
वह तो रूप सदा तुम धारो, या ते जीव जगाओ,
यह भी भेद सुना में तुमसे, सूरत शबद मारग नित गाओ,
शबद रूप जो रूप तुम्हारा, वा में भी अब सूरत पठाओ,
डरता रहूं मौत और दुःख से, निर्भय कर अब मोहे छुड़ाओ,
दिन दयाल जीव हितकारी, राधा स्वामी काज  बनाओ,
दिन दयाल जीव हितकारी, राधा स्वामी काज  बनाओ,

दाता तेरा मेरा प्यार कभी न बदले

दाता तेरा मेरा प्यार कभी न बदले,
दाता मेरा व्यवहार कभी न बदले,
दाता तेरा मेरा प्यार कभी न बदले,

सतसतंग तेरा छोड़ू कभी न 
मुख भी तुमसे मोडू कभी ना,
मेरा यह व्यवहार कभी न बदले
दाता तेरा मेरा प्यार कभी न बदले,....

द्वारे तेरे आता रहूं मैं,
चरणों में शीश झुकता रहूं मैं,
मन से मन का ये तार कभी न बदले,
दाता तेरा मेरा प्यार कभी न बदले,
दाता तेरा मेरा प्यार कभी न बदले,....

अपना हो या हो बेगाना 
बदले चाहे सारा ज़माना,
चाहे सारा संसार भले ही बदले,
दाता तेरा मेरा प्यार कभी न बदले....

तेरा प्यार बड़ा ऊँचा साड़ी प्रीत नमानी है

तेरा प्यार बड़ा ऊँचा साड़ी प्रीत नमानी है,
तुसा प्यार बड़ा दिता असा कदर न जानी है,

हो जन बिन तडपे मीन वेचारी,
चन बिन तडपे चकोरा,
तुज बिन तडपे यह मन मेरा सह न सकू विछोडा,
हून किस नाल प्यार करा सारी दुनिया बेगानी है,
तेरा प्यार बड़ा ऊँचा साड़ी प्रीत नमानी है,
तुसा प्यार बड़ा दिता ......

हो बीत गैया जो बीत बहारा याद करा ते रोवा,
तुज बिन मेरे मोहन प्यारे हंजू हार पिरोवा,
हूँ क्यों मैं धीर धरा मेरी उम्र नादानी है,
तेरा प्यार बड़ा ऊँचा साड़ी प्रीत नमानी है,
तुसा प्यार बड़ा दिता ......

अखा विच तेरा रूप निरला दिल विच याद है तेरी,
तुज बिन मेरे बंसी वाले कौन सुने गा मेरी,
एह नाता तोड़ी ना ओ साड़ी प्रीत पुराणी है,
तेरा प्यार बड़ा ऊँचा साड़ी प्रीत नमानी है,
तुसा प्यार बड़ा दिता ......

रेहमत तेरी ऐसी हुई क्या मैं बताओ मैं क्या हो गई

रेहमत तेरी ऐसी हुई क्या मैं बताओ मैं क्या हो गई,
किरपा गुरु जी तेरी हुई ज़िंदगी गमो से रिहा हो गई,

जब जब मैं बिखरी सम्बाला है तूने,
बे जानो में ज़िंदगी को डाला है तुम्हने,
शुकराना है नजराना है दिल के में गोरा सफा हो गई,
किरपा गुरु जी तेरी हुई ज़िंदगी गमो से रिहा हो गई,
रेहमत तेरी ऐसी हुई क्या मैं बताओ मैं क्या हो गई......

तेरी भक्ति का रस जिसको भी चढ़ा है,
वो खुशियों के दामन में झूमा पड़ा है,
जो अनजान थे वो ज्ञानी बने जिसपर भी तेरी रजा हो गई,
किरपा गुरु जी तेरी हुई ज़िंदगी गमो से रिहा हो गई,

रेहमत तेरी ऐसी हुई क्या मैं बताओ मैं क्या हो गई......

तेरी शक्ति नसीबो को पलटी खिला दे,
जो हो न सके वो तू करके दिखा दे,
तुझको पता हर मर्ज का मेरे नजर गवाह हो गई,
किरपा गुरु जी तेरी हुई ज़िंदगी गमो से रिहा हो गई,

रेहमत तेरी ऐसी हुई क्या मैं बताओ मैं क्या हो गई......

सच्चे पातशाह मेरी बक्श खता मैं निमाना

सच्चे पातशाह मेरी बक्श खता मैं निमाना,
तू बेअंत तेरा अंत ना जाना,

दीन छोड़ दुनि संग लगा,
तेरा नाम ना जपेया भागा,
कोई गन न पल्ले नरक न मैनु झले,
पाप कमाना,
तू बेअंत तेरा अंत ना जाना
सच्चे पातशाह मेरी बक्श खता मैं निमाना
तू बेअंत तेरा अंत ना जाना

दर तेरे सवाली जो आवे मुहो माँगियां मुरादा ओ पावे,
मैं भी आया शरणी मैनु लावो चरनी विर्ध बिशाना,
तू बे अंत तेरा अंत न जाना,
सच्चे पातशाह मेरी बक्श खता मैं निमाना
तू बेअंत तेरा अंत ना जाना

तर गये पापी नाम रट के,
कटी चौरासी नाम जपके,
विसर नाही दातार बक्शो मेरे करतार दर्श दिखाना,
तू बेअंत तेरा अंत ना जाना
सच्चे पातशाह मेरी बक्श खता मैं निमाना
तू बेअंत तेरा अंत ना जाना

मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा

मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा 
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा.........

तू बादशाह मै गोली तेनु मै किवें रिझावा
 दो जहां दे मालिक सुन लै मेरी तदावा
तू बादशाह मै गोली तेनु मै किवें रिझावा
 दो जहां दे मालिक सुन लै मेरी तदावा
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा.........

हुण  भुलावी दाता भुलया ता मै बथेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा.........

झोली  मेरे हीरा मुरशद ने जद सी पाया
खुशिया  नचया प्रीतम अथरू ने गीत गाया
झोली  मेरे हीरा मुरशद ने जद सी पाया
खुशिया  नचया प्रीतम अथरू ने गीत गाया
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा.........

गलिया  नूर तक के मिटदा गया अँधेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा.........

मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
मेरे रोम रोम अन्दर वस जाए याद तेरा
होका लया सी दे के  आशीर्वाद तेरा
मेरे रोम रोम अन्दर वस जाए याद तेरा
होका लया सी दे के  आशीर्वाद तेरा
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा.........

हुण  भुलावी दाता भुलया ता मै बथेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा.........

राम बिनु तन को ताप न जाई

राम बिनु तन को ताप न जाई

जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

तुम जलनिधि मैं जलकर मीना।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा।
दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला।
कहै कबीर राम रमूं अकेला॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय

रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥

सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल।
बाहर के पट बंद करि अंतर का पट खोल।

माला फेरत जुग गया, मिटा ना मन का फेर।
कर का मनका छाँड़ि दे, मन का मनका फेर॥

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय।

सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फरियाद॥

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार॥

साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाय।
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं।
अंतर्यामी एक तुम आतम के आधार।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभु कौन उतारे पार॥
गुरु बिन कैसे लागे पार॥

मैं अपराधी जन्म का नखसिर भरा विकार।
तुम दाता दुःखभंजना मेरी करो सम्हार।
अवगुन मेरे बापुरो बकसहु गरीब निवाज।
जो मैं पूत कपूत हूँ तउ पिता को लाज॥
गुरु बिन कैसे लागे पार॥

बीत गये दिन भजन बिना रे

बीत गये दिन भजन बिना रे। 
भजन बिना रे  भजन बिना रे॥ 

बाल अवस्था खेल गँवायो।
जब यौवन तब मान घना रे॥

लाहे कारण मूल गँवायो।
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे॥

कहत कबीर सुनो भाई साधो।
पार उतर गये संत जना रे॥

भजो रे भैया राम गोविंद हरी

भजो रे भैया राम गोविंद हरी।
राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी॥

जप तप साधन नहिं कछु लागत  खरचत नहिं गठरी॥
संतत संपत सुख के कारन  जासे भूल परी॥
कहत कबीर राम नहीं जा मुख्  ता मुख धूल् भरी॥

मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में

मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में॥

जो सुख पाऊँ राम भजन में 
सो सुख नाहिं अमीरी में 
मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में॥

भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में॥

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मगरूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में॥

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में॥

कहत कबीर सुनो भाई साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में॥

बहुरि नहिं आवना या देस

बहुरि नहिं आवना या देस ॥टेक॥

जो जो गै बहुरि नहि आए  पठवत नाहिं संदेसा ॥१॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया  देवी देव गनेसा ॥२॥
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेसा ॥३॥
जोगी जंगम औ संन्यासी  दीगंबर दरवेसा ॥४॥
चुंडित  मुंडित अरु पंडित लो  सरग रसातल सेसा ॥५॥
ज्ञानी  गुनी  चतुर अरु कविता  राजा रंक नरेसा ॥६॥
को राम को रहिम बखानै  कोऊ कहै आदेसा ॥७॥
नाना भेस बनाय सबै मिलि ढूँढ़ि फिरै चहुँ देसा ॥८॥
कहै कबीर अंत ना पैहो  बिन सतगुरु उपदेशा ॥९॥

केहि समुझावौ सब जग अंधा

केहि समुझावौ सब जग अंधा ॥टेक॥

इक दु होय उन्हें समुझावौं  
सबहि भुलाने पेट के धंधा।
पानी घोड़ पवन असवरवा  
ढरकि परै जस ओसक बुंदा ॥१॥
गहिरी नदी अगम बहै धरवा  
खेवनहार के पड़िगा फंदा।
घर की वस्तु नजर नहि आवत  
दियना बारि के ढूॅंढ़त अंधा ॥२॥
लागी आगि सबै बन जरिगा  
बिन गुरुज्ञान भटकिगा बंदा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो  
जाय लंगोटी झारि के बंदा ॥३॥

दीवाने मन भजन बिना दुख पैहों

दीवाने मन भजन बिना दुख पैहों ॥टेक॥

पहिला जनम भूत का पैहों सात जनम पछितैहों।
काँटा पर का पानी पैहों  प्यासन ही मरि जैहों ॥१॥

दूजा जनम सुवा का पैहों  बाग बसेरा लैहों।
टूटे पंख लगे मँडराने अधफड़ प्राण गँवैहों ॥२॥

बाजीगर के बानर होइहों  लड़िकन नाच नचैहों।
ऊॅंच नीच से हाथ पसारिहों  मांगे भीख न पैहों ॥३॥

तेली के घर बैला होइहों  आँखिन ढाँपि ढँपैहों। 
कोस पचास घरै मह चलिहों  बाहर होन न पैहों ॥४॥

पँचवा जनम ऊॅंट का पैहों  बिन तोलन बोझ लदैहों।
बैठे से तो उठ न पैहों  खुरच खुरच मरि जैहों ॥५॥

धोबी के घर गदहा होइहों  कटी घास नहिं पैंहों।
लदी लादि आपु चढ़ि बैठे  लै घाटे पहुँचैंहों ॥६॥

पंछिन मां तो कौवा होइहों  करर करर गुहरैहों।
उड़ि के जााय बैठि मैले थल  गहिरे चोंच लगैहों ॥७॥

सत्तनाम की हेर न करिहों  मन ही मन पछितैहों।
कहै कबीर सुनो भाई साधो  नरक नसेनी पैहों ॥८॥

झीनी झीनी बीनी चदरिया

झीनी झीनी बीनी चदरिया

झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥टेक॥

काहे के ताना काहे के भरनी  
      कौन तार से बीनी चदरिया ॥१॥

इंगला पिंगला ताना भरनी  
      सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥२॥

आठ कँवल दल चरखा डोलै  
      पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥३॥

साँई को सियत मास दस लागे  
      ठोक ठोक कै बीनी चदरिया ॥४॥

सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी  
      ओढ़ि के मैली कीनी चदरिया ॥५॥

दास कबीर जतन करि ओढ़ी  
      ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥६॥

Thursday 10 January 2019

गाफिल मत हो चुनरी वाली, बड़ी अनमोल है तेरी चुनरी की लाली (ये हे नैहर की चुनरी गुजरिया)

गाफिल मत हो चुनरी वाली, बड़ी अनमोल है तेरी चुनरी की लाली !


ये हे नैहर की चुनरी गुजरिया,
जतन से जरा ओढ़ चुनरी,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी 
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी 
रखवारी में तू रख ना केसरिया
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......

बाबुल तोरा शयाना हे बुनकर,
चुनरी में धागे सजाये चुन चुन कर,
नो दस मास बुनन में लागे,
तब चुनरी रखी दुनिया के आगे,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी 
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी 
कैसे बुनी गई कैसे बुनी नहीं किसी को खबरिया 
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......

इड़ा पिंगला सुष्मना हे ऐसी,
 गंगा जमुना सरस्वती जैसी ,
उनन्चास मरुत बहे सुनरी,
 उनमे लहरावे तेरी चुनरी,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी, 
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी ,
सोवे चुनरी की ओट में  सवरिया ,
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......

दुनिया ने ढूंढीऔरों में बुराई,
अपनी बुराई से आँख चुराई,
अपने दागन  पे पर्दा गिराए,
ओरन की चुनरी के दाग गिनवे,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी, 
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी ,
कहीं दुनिया उठाये ना उँगरिया,
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......

ज्ञानी इस चुनरी का मान बढ़ावे,
मुरख मैली करे माटी में मिलावे,
दास कबीर ने ऐसी ओढी,
जैसी लाये थे वैसी ही छोड़ी,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी, 
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी ,
आगे बाबुल के झुके ना नजरिया,
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......


मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में

मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥

ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥
ना मैं जप मे ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में।
ना मैं क्रियाकर्म में रहता, ना ही योग सन्यास ॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥

नहिं प्राण में नहिं पिण्ड में, ना ब्रह्मांड आकाश में।
ना मैं भृकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥

खोजि होय तो तुरंत मिलिहौं, पल भर की तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥

मन फूला फूला फिरे जगत् में, कैसा नाता रे

मन फूला फूला फिरे जगत् में, कैसा नाता रे।

माता कहै यह पुत्र हमारा, बहन कहे बीर मेरा।
भाई कहै यह भुजा हमारी, नारि कहे नर मेरा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।

पैर पकरि के माता रोवे, बांह पकरि के भाई।
लपटि झपटि के तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई।।
जगत में कैसा नाता रे ।।

चार जणा मिल गजी बनाई, चढ़ा काठ की घोड़ी ।
चार कोने आग लगाया, फूंक दियो जस होरी।। 
जगत में कैसा नाता रे ।।

हाड़ जरे जस लाकड़ी, केस जरे जस घासा।
सोना ऐसी काया जरि गई, कोइ न आयो पासा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।

घर की तिरया देखण लागी ढूंढत फिर चहुँ देशा 
कहे कबीर सुनो भई साधु, एक नाम की आसा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।

उमरिया धोखे में खोये दियो रे

उमरिया धोखे में खोये दियो रे।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो। उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।
लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।।
बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।
वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो।
न हरि भक्ति न साधो की संगत,
न शुभ कर्म कियो।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
चोला छुट गयो।।

करम गति टारै नाहिं टरी

करम गति टारै नाहिं टरी ॥टेक॥

मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी  सोधि के लगन धरी।
सीता हरन मरन दसरथ को  वन में विपति परी ॥१॥

कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि  कहँ वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित दान करत नृग  गिरगिट जोन परी ॥२॥

पिता वचन तेजे सो पापी सो प्रह्लाद करी।
ताको फंद छुड़ावन को प्रभु नरहरि रूप धरी ॥३॥

पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर विपति परी।
कहत कबीर सुनो भाई साधो  होनी होय रही ॥४॥

रे दिल गाफिल

रे दिल गाफिल

रे दिल गाफिल गफलत मत कर  
     एक दिना जम आवेगा ॥टेक॥

सौदा करने या जग आया  
     पूँजी लाया  मूल गॅंवाया 
प्रेमनगर का अन्त न पाया  
     ज्यों आया त्यों जावेगा ॥१॥

सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता  
     या जीवन में क्या क्या कीता 
सिर पाहन का बोझा लीता  
     आगे कौन छुड़ावेगा ॥२॥

परलि पार तेरा मीता खड़िया  
     तासों मिलने का ध्यान न धरिया 
टूटी नाव ऊपर जा बैठा  
     गाफिल गोता खावेगा ॥३॥

दास कबीर कहै समुझाई  
     अन्त समय तेरा कौन सहाई 
चला अकेला संग न कोऊ  
     कीया अपना पावेगा ॥४॥

बीत गये दिन भजन बिना रे

बीत गये दिन भजन बिना रे ।
भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥

बाल अवस्था खेल गवांयो ।
जब यौवन तब मान घना रे ॥

लाहे कारण मूल गवाँयो ।
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥

कहत कबीर सुनो भई साधो ।
पार उतर गये संत जना रे ॥

Wednesday 9 January 2019

तुम शरणाई आया ठाकुर

तुम शरणाई आया ठाकुर
तुम शरणाई आया ठाकुर ॥

उतरि गइओ मेरे मन का संसा जब ते दरसनु पाइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर

अनबोलत मेरी बिरथा जानी अपना नामु जपाइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर

दुख नाठे सुख सहजि समाए अनद अनद गुण गाइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर

बाह पकरि कढि लीने अपुने ग्रिह अंध कूप ते माइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर

कहु नानक गुरि बंधन काटे बिछुरत आनि मिलाइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर

बिसर गई सब तात पराई

बिसर गई सब तात पराई
बिसर गई सब तात पराई
बिसर गई सब तात पराई
बिसर गई सब तात पराई
जब ते साध संगत मोहे पाई


ना कोई बैरी नहीं बेगाना
सगल संग हमको बन आई
बिसर गई सब तात पराई


जो प्रभु कीनो सो भली मानियो
यह सुमत साधु ते पाई
बिसर गई सब तात पराई


सब में रव रहिया प्रभु एक
पेख पेख नानक बिगसाई
बिसर गई सब तात पराई 

करू बेनंती दोउ कर जोरी

करू बेनंती दोउ कर जोरी
अरज सुनो राधास्वामी मोरी
सतपुरुष तुम सतगुरू दाता
सब जीवन के पितु और माता
दया धार अपना कर लीजे
काल जाल से न्यारा कीजे
करू बेनंती दोउ कर जोरी.........

सतयुग त्रेता द्वापर बीता
काहू ना जानी शब्द की रीता
कलयुग में स्वामी दया विचारी
परगट करके शब्द पुकारी
जीव काज स्वामी जग में आए
भो सागर से पार लगाए
करू बेनंती दोउ कर जोरी.........

तीन छोड़ चोथा पद दीना
सतनाम सात गुरु गत चीना
जगमत ज्योत होत उजियारा
गगन सेहत पर चंद्र निहारा
सेत सिहासन छत्र बिराजे
अनहद शब्द गेहब धुन गाजे
करू बेनंती दोउ कर जोरी.........

शर अक्षर निरक्षर पारा
विनती करे जहां दास तुम्हारा
लोकअलोक पाऊ सुख धामा
चरण शरण दीजे बिसरामा
करू बेनंती दोउ कर जोरी
अरज सुनो राधास्वामी मोरी
करू बेनंती दोउ कर जोरी.........

करू बेनंती दोउ कर जोरी
अरज सुनो राधास्वामी मोरी