Friday 11 January 2019

रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय

रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥

सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल।
बाहर के पट बंद करि अंतर का पट खोल।

माला फेरत जुग गया, मिटा ना मन का फेर।
कर का मनका छाँड़ि दे, मन का मनका फेर॥

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय।

सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फरियाद॥

No comments:

Post a Comment