रे दिल गाफिल रे दिल गाफिल गफलत मत कर एक दिना जम आवेगा ॥टेक॥ सौदा करने या जग आया पूँजी लाया मूल गॅंवाया प्रेमनगर का अन्त न पाया ज्यों आया त्यों जावेगा ॥१॥ सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता या जीवन में क्या क्या कीता सिर पाहन का बोझा लीता आगे कौन छुड़ावेगा ॥२॥ परलि पार तेरा मीता खड़िया तासों मिलने का ध्यान न धरिया टूटी नाव ऊपर जा बैठा गाफिल गोता खावेगा ॥३॥ दास कबीर कहै समुझाई अन्त समय तेरा कौन सहाई चला अकेला संग न कोऊ कीया अपना पावेगा ॥४॥
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