नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार॥ साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाय। हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं। अंतर्यामी एक तुम आतम के आधार। जो तुम छोड़ो हाथ प्रभु कौन उतारे पार॥ गुरु बिन कैसे लागे पार॥ मैं अपराधी जन्म का नखसिर भरा विकार। तुम दाता दुःखभंजना मेरी करो सम्हार। अवगुन मेरे बापुरो बकसहु गरीब निवाज। जो मैं पूत कपूत हूँ तउ पिता को लाज॥ गुरु बिन कैसे लागे पार॥
No comments:
Post a Comment