Thursday 10 January 2019

करम गति टारै नाहिं टरी

करम गति टारै नाहिं टरी ॥टेक॥

मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी  सोधि के लगन धरी।
सीता हरन मरन दसरथ को  वन में विपति परी ॥१॥

कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि  कहँ वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित दान करत नृग  गिरगिट जोन परी ॥२॥

पिता वचन तेजे सो पापी सो प्रह्लाद करी।
ताको फंद छुड़ावन को प्रभु नरहरि रूप धरी ॥३॥

पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर विपति परी।
कहत कबीर सुनो भाई साधो  होनी होय रही ॥४॥

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