दीवाने मन भजन बिना दुख पैहों ॥टेक॥ पहिला जनम भूत का पैहों सात जनम पछितैहों। काँटा पर का पानी पैहों प्यासन ही मरि जैहों ॥१॥ दूजा जनम सुवा का पैहों बाग बसेरा लैहों। टूटे पंख लगे मँडराने अधफड़ प्राण गँवैहों ॥२॥ बाजीगर के बानर होइहों लड़िकन नाच नचैहों। ऊॅंच नीच से हाथ पसारिहों मांगे भीख न पैहों ॥३॥ तेली के घर बैला होइहों आँखिन ढाँपि ढँपैहों। कोस पचास घरै मह चलिहों बाहर होन न पैहों ॥४॥ पँचवा जनम ऊॅंट का पैहों बिन तोलन बोझ लदैहों। बैठे से तो उठ न पैहों खुरच खुरच मरि जैहों ॥५॥ धोबी के घर गदहा होइहों कटी घास नहिं पैंहों। लदी लादि आपु चढ़ि बैठे लै घाटे पहुँचैंहों ॥६॥ पंछिन मां तो कौवा होइहों करर करर गुहरैहों। उड़ि के जााय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहों ॥७॥ सत्तनाम की हेर न करिहों मन ही मन पछितैहों। कहै कबीर सुनो भाई साधो नरक नसेनी पैहों ॥८॥
Friday, 11 January 2019
दीवाने मन भजन बिना दुख पैहों
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