गाफिल मत हो चुनरी वाली, बड़ी अनमोल है तेरी चुनरी की लाली !
जतन से जरा ओढ़ चुनरी,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी
रखवारी में तू रख ना केसरिया
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......
बाबुल तोरा शयाना हे बुनकर,
चुनरी में धागे सजाये चुन चुन कर,
नो दस मास बुनन में लागे,
तब चुनरी रखी दुनिया के आगे,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी
कैसे बुनी गई कैसे बुनी नहीं किसी को खबरिया
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......
इड़ा पिंगला सुष्मना हे ऐसी,
गंगा जमुना सरस्वती जैसी ,
उनन्चास मरुत बहे सुनरी,
उनमे लहरावे तेरी चुनरी,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी,
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी ,
सोवे चुनरी की ओट में सवरिया ,
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......
दुनिया ने ढूंढीऔरों में बुराई,
अपनी बुराई से आँख चुराई,
अपने दागन पे पर्दा गिराए,
ओरन की चुनरी के दाग गिनवे,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी,
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी ,
कहीं दुनिया उठाये ना उँगरिया,
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......
ज्ञानी इस चुनरी का मान बढ़ावे,
मुरख मैली करे माटी में मिलावे,
दास कबीर ने ऐसी ओढी,
जैसी लाये थे वैसी ही छोड़ी,
ओढ़ चुनरी ओढ़ चुनरी,
यहाँ वहाँ यूँही मत छोड़ चुनरी ,
आगे बाबुल के झुके ना नजरिया,
जतन से जरा ओढ़ चुनरी.......
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